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१०. स्थान शब्द के १५ निक्षेप हैं
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१. नामस्थान
२. स्थापनास्थान
३. द्रव्यस्थान
४. क्षेत्रस्थान
११. योधस्थान
१२. अचलस्थान
१३. गणणस्थान
१४. संधनास्थान
५. अद्धास्थान
१५. भावस्थान
११. प्रथम दशा में वर्णित बीस असमाधिस्थान केवल निम्म — आधारमात्र' हैं । इनके सदृश अन्य भी असमाधिस्थान हो सकते हैं । इस प्रसंग में तथा अन्यत्र भी ऐसा ही समझना चाहिए। दूसरी दशा : शबल
६. ऊर्ध्वस्थान
७.
उपरतिस्थान
८.
वसतिस्थान
९ संयमस्थान
१०. प्रग्रहस्थान
१२. शबल शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव द्रव्य शबल हैचितकबरा बैल आदि । आचार को चितकबरा करने वाला कुशील अथवा जो आधाकर्म आदि में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार का सेवन करता है, वह भाव शबल होता है ।
१३. अथवा लघु अपराध में शबलत्व होता है। प्रायश्चित्त को प्राप्त न होकर छेदपर्यन्त प्रायश्चित्त पाता है. देता है । उसे शबलचारित्री कहा जाता है ।
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१४. (अखंड घट जल से परिपूर्ण होता है ।) खंडित घट के अनेक रूप हैं
• बाल-बाल जितने छिद्र वाला ।
० राजि - छोटी सी दरार वाला ।
दालि-बड़ी दरार वाला ।
० खंड – एक भाग खंडित ।
बोड - जिसमें एक भी कोना न हो ।
० खुत-छिद्रों वाला ।
० भिन्न- बड़े छिद्रों वाला फूटा हुआ घट |
०
निर्युक्तिपंचक
मूल
जो मुनि प्रायश्चित्त के रूप में वह अपने चारित्र को भी शवल बना
इन घड़ों से पानी क्रमशः अधिक, अधिकतर भरता है अतः ये दोषपूर्ण हैं । इसी प्रकार शबल दोषों से देश – आंशिक और सर्व विराधना होती है ।
यहां 'कम्मासपट्ट” के दृष्टांत से भी शबल और उससे होने वाली विराधना बताई गई है । ( पट्ट के कई प्रकार हैं- कम्मासपट्ट, वक्रदंडपट्ट, वृत्तपट्ट आदि । )
१. निम्मं – आधारमात्रं । दश्रुचू. प ६ ।
२. जैसी सूती वस्त्र पर छोटा या बड़ा धब्बा हो तो वह वस्त्र मलिन ही कहा जाता है । उसी
१५. 'आसायणा' के दो प्रकार हैं- मिथ्याप्रतिपत्ति तथा लाभ । लाभ आसादना के छह निक्षेप हैं - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । इनमें से प्रत्येक के दो-दो भेद हैं- इष्ट और अनिष्ट |
प्रकार चारित्र में भी छोटी बड़ी स्खलना से शबल दोष लगता है, जिससे आंशिक या सर्व विराधना होती है ।
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