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परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं
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जो आहार, उपधि आदि नहीं मिलने पर भी दीन नहीं बनता, वह अदीनवृत्ति है।
(दशजिचू पृ. ३२२) अदेसकालपलावि-क्षेत्र और समय को जाने बिना बोलने वाला। अदेसकालपलावी जाहे किंचि कज्जं
अतीतं ताहे भणति जति पकरेंतो सुन्दरं होतं, मए पुव्वं चेव चिंतितेल्लयं । अदेशकालप्रलापी वह होता है, जो कार्य सम्पन्न होने पर सोचता है कि यदि मैं यह कार्य
कर लेता तो कितना अच्छा होता। मैंने पहले ही यह सोच रखा था। (उचू पृ. १९७) अपडिण्ण-अप्रतिज्ञ। अप्रतिज्ञः इह परलोकेषु कामेषु अप्रतिज्ञः अमूर्च्छित अद्विष्टो वा।
जो इहलोक और परलोक सम्बंधी कामभोगों में अमूर्च्छित और आकांक्षारहित होता है, वह अप्रतिज्ञ है।
(सूचू १ पृ. १८५) अप्पिच्छ-अल्पेच्छ। अप्पिच्छया णाम जो ण मुच्छं करेइ, ण वा अतिरित्ताण गिण्हइ।
प्राप्त पदार्थों में मूर्छा न करने वाला तथा आवश्यकता से अधिक न लेने वाला अल्पेच्छ होता है।
(दशजिचू पृ. ३२०) • अप्पिच्छो णाम जो जस्स आहारो ताओ आहारपमाणाओ ऊणमाहारेमाणो अप्पिच्छो भवति । अपनी आहार की मात्रा से जो कम आहार लेता है, वह अल्पेच्छ कहलाता है।
__ (दशजिचू पृ. २८२) अबुह-अज्ञानी। अबुहो णाम अप्रबुद्धेन्द्रियो बालः।
जिसका इन्द्रिय-ज्ञान विकल है, जो बाल है, वह अबुध है। (सूचू १ पृ. ३७) अब्भक्खाण-अभ्याख्यान । अब्भक्खाणं असब्भूताभिणिवेसो। अयथार्थ अभिनिवेश अभ्याख्यान कहलाता है।
(सूचू १ पृ. २४७) अब्भुट्ठाण-अभ्युत्थान। अब्भुट्ठाणं णाम जं अब्भुट्ठाणरिहस्स आगयस्स अभिमुहं उट्ठाणं। अभ्युत्थान के योग्य व्यक्ति के आने पर उसके सम्मुख खड़ा होना अभ्युत्थान है।
(दशजिचू पृ. २९५) अभिगम-विनयप्रतिपत्ति । अभिगमो नाम साधूणमायरियाणं जा विणयपडिवत्ती सो अभिगमो भण्णइ। साधुओं तथा आचार्य के प्रति की जाने वाली विनयप्रतिपत्ति को अभिगम कहा जाता है।
(दशजिचू पृ. ३२४) अभिणिव्वुड-अभिनिर्वृत । अभिनिर्वृतो लोभादिजयान्निरातुरः।
अभिनिर्वृत वह है, जो कषाय-विजय से अनातुर हो गया है। (सूटी पृ. ११७) अभिधारणा-अभिधारणा। प्रस्विन्नो यदहिरवतिष्ठते वातागमनमार्गे साऽभिधारणा। पसीने से लथपथ हो जाने पर बाहर वायु के आगमन मार्ग में जाकर बैठना अभिधारणा है।
(आटी पृ. ५०) अभिहड-अभिहत । अभिहडं जं अभिमुहमाणीतं उवस्सए आणेऊण दिण्णं।
सम्मुख लाकर उपाश्रय में दी जाने वाली भिक्षा अभिहत भिक्षा है। (दशअच प. ६० अयल-अचल।अचलोत्ति थिरो नाणादिसु थिरचित्तो, ण य भज्जति अरतिरतीहिं अणुलोमेहिं पडिलो
य उवसग्गेहिं।
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