Book Title: Niryukti Panchak Part 3
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 803
________________ ६७२ ओरब्भे य कागिणी अंबए य ववहार सागरे चेव । पंचेते दिट्ठता वुड्ढं च हाणिं च ससीव दट्टु, पूरावरेगं च महानईणं । जह तुब्भे तह अम्हे, तुब्भे वि य होहिहा जहा अम्हे । अप्पाइ पडतं, पंडुरपत्तं किसलयाणं ॥ जलबुब्बुयसन्निभे य माणुस्से । किंपागफलोवमनिभेसु । सीहत्ता निक्खमिउं, सीहत्ता चेव विहरसू । अमरवधूणं सरिसरुवं । दोगुंदगो व देवो । दंसमसगस्समाणा, जलूक - विच्छुगसमा । आचारांग नियुक्ति अट्ठी जहा सरीरम्मि, अणुगतं चेयणं खरं दिट्ठे । एवं जीवाणुगयं, पुढविसरीरं खरं होति ॥ जह हत्थिस्स सरीरं, कललावत्थस्स अहुणोववन्नस्स । होति उदगंडगस्स य, एसुवमा आउजीवाणं ॥ जह देहपरीणामो, रत्तिं खज्जोयगस्स सा उवमा । जरितस्स य जह उम्हा, एसुवमा तेउजीवाणं ॥ जह सगलसरिसवाणं, सिलेसमिस्साण वत्तिया वट्टी । पत्तेय 1 जह वा तिलसक्कुलिया, बहूहिं तिलेहिं मेलिया संती । पत्तेय --------| जह देवस्स सरीरं, अंतद्धाणं व अंजणादीसुं । एओवमा आदेसो, वाएऽसंतेऽवि रूवम्मि ॥ जह सव्वपायवाणं, भूमीए पतिट्ठियाणि मूलाणि । कम्मपायवाणं, संसारपट्टिया मूला ॥ इय जह सुत्त - मत्त-मुच्छिय, असहीणो पावती बहुं दुक्खं । सीयघरो संजमो भवति सीतो । कमलविसालनेत्तं । जह खलु झुसिरं कट्ठ, सुचिरं सुक्कं लहुं डहइ अग्गी । तह खलु खवेंति कम्मं, सम्मच्चरणट्ठिया साहू ॥ रण्णो जह तिक्ख - सीयला आणा । Jain Education International For Private & Personal Use Only निर्युक्तिपंचक (२४१) (२६२ / १ ) (३०१) (३९५) (३९६) (४१२) (४३१) (४३२) (४८७) (८५) ( ११० ) (११९) (१३१,१३२) (१६७) (१८७) (२१३) (२०७) (२२९) (२३५) (२८७) www.jainelibrary.org

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