Book Title: Niryukti Panchak Part 3
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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६७०
नियुक्तिपंचक
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(२३३, २३४)
(२३५) (२४२)
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कुणमाणोऽवि निवित्तिं परिच्चयंतो वि सयण-धण-भोए। दितो वि दुहस्स उरं, मिच्छद्दिट्ठी न सिज्झइ उ॥ दंसणवओ हि सफलाणि होति तवनाणचरणाई। उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गती॥ एवं लग्गति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा। विरत्ता उ न लग्गति, जहा से सुक्कगोलए। जह खलु झुसिरं कटुं, सुचिरं सुक्कं लहुं डहइ अग्गी। तह खलु खति कम्मं, सम्मच्चरणट्ठिया साहू ॥ सारो हु नाण-दंसण-तव-चरणगुणा हियट्ठाए। लोगस्स धम्मसारो, धम्म पि नाणसारियं बेंति। नाणं संजमसारं, संजमसारं च निव्वाणं॥ जह खलु मलिणं वत्थं, सुज्झइ उदगादिएहि दव्वेहिं । एवं भावुवहाणेण, सुज्झती कम्म अट्ठविहं ॥ किह मे होज अवंझो, दिवसो? किं वा पभू तवं काउं। को इह दव्वे जोगो, खेत्ते काले समय-भावे॥ सूत्रकृतांग नियुक्ति तव-संजम-नाणेसु वि, जइ माणो वज्जितो महेसीहिं। अत्तसमुक्कसणटुं, किं पुण हीला नु अन्नेसिं? ॥ दीसंति सूरवादी, नारीवसगा न ते सूरा। धम्मम्मि जो दढमती, सो सूरो सत्तिओ य वीरो य। न हु धम्मनिरुच्छाओ, पुरिसो सूरो सुबलिओ वि।। सम्मप्पणीतमग्गो, नाणं तध दंसणं चरित्तं च। न करेति दुक्खमोक्खं, उज्जममाणो वि संजम-तवेसु। तम्हा अत्तुक्करिसो, वज्जेतव्वो जतिजणेणं॥ दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति दंसण-नाण-चरित्तं,तवो य विणओ य होति गुरुमूले। आणं कोवेमाणो, हंतव्वो बंधियव्वो य। सज्झाय-संजम-तवे, धणियं अप्पा नियोतव्वो।
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