Book Title: Niryukti Panchak Part 3
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 799
________________ परिशिष्ट-८ सूक्त-सुभाषित (८६) (९१) (१२०/२) (१२९) (१४०) (१४१) (१५१) (२६६, २६७) (२६८) दशवैकालिक नियुक्ति देवा वि लोगपुज्जा पणमंति सुधम्म। तसथावरहिंसाए जणा अकुसला उ लिप्पंति। उक्किटुं मंगलं धम्मो। जह मम न पियं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । उक्कामयंति जीवं धम्मातो तेण ते कामा। कामे पत्थेमाणो रोगे पत्थेति खलु जंतू। इंदिय विसय-कसाया, परीसहा वेयणा पमादा य। एए अवराहपदा, जत्थ विसीयंति दुम्मेहा ॥ वयणविभत्तिअकुसलो, वओगतं बहुविधं अजाणंतो। जइ वि न भासति किंची, न चेव वइगुत्तयं पत्तो ॥ वयणविभत्तीकुसलो, वओगतं बहुविधं वियाणंतो। दिवसमवि भासमाणो, अभासमाणो व वइगुत्तो॥ पुव्वं बुद्धीइ पेहित्ता, ततो वक्कमुदाहरे। जस्स पुण दुप्पणिहिताणि, इंदियाइं तवं चरंतस्स। सो हीरति असहीणेहि, सारही इव तुरंगेहिं ।। कोहं माणं मायं लोभं च महाभयाणि चत्तारि। जस्स वि य दुप्पणिहिता, होंति कसाया तवं करेंतस्स। सो बालतवस्सी विव, गयण्हाणपरिस्समं कुणति ॥ सामण्णमणुचरंतस्स, कसाया जस्स उक्कडा होति । मन्नामि उच्छुफुल्लं व, निप्फलं तस्स सामण्णं ॥ नाणी नवं न बंधति। जो भिक्खू गुणरहितो, भिक्खं हिंडति न होति सो भिक्खू। वण्णेणं जुत्तिसुवण्णगं व असती गुणनिधिम्मि। उत्तराध्ययन नियुक्ति जह दीवा दीवसयं, पदिप्पए सो य दिप्पती दीवो। दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेति ।। सुहिओ हु जणो न बुज्झती। (२७४) (२७५) (२७६, २७७) (२९३) (३३१) (८) (१३५) www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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