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नियुक्तिपंचक
जिसकी त्वचा म्लान हो गयी हो और अंतर भाग अम्लान या आर्द्र हो, वह तुम्बाग कहलाता
__ (दशअचू. पृ. ११७, दशजिचू. पृ. १८४) थावर-स्थावर। थावरो जो थाणातो न विचलति। जो अपने स्थान से नहीं चल पाता, वह स्थावर है।
(दशअचू.पृ. ८१) • जे एगम्मि ठाणे अवट्ठिया चिटुंति ते थावरा भण्णंति।
जो एक ही स्थान पर अवस्थित रहते हैं, वे जीव स्थावर कहलाते हैं। (दशजिचू.पृ.१४७) थिग्गल-थिग्गलं नाम जं घरस्स दारं पुव्वमासी तं पडिपूरियं ।
घर का वह द्वार, जो किसी कारणवश फिर से चिना हुआ हो। (दशजिचू. पृ. १७४) थिरीकरण-स्थिरीकरण। स्थिरीकरणं तु धर्माद्विषीदतां सतां तत्रैव स्थापनम्। धर्म में विषादप्राप्त लोगो को पुनः धर्म में स्थापित करना स्थिरीकरण है।
(दशहाटी. पृ. १०२) थिल्लि-यानविशेष। थिल्लि त्ति वेगसराद्वयनिर्मितो यानविशेषः।
जो यान दो खच्चरों से चलता है, वह थिल्ली कहलाता है। (सूटी. पृ. २२०) थेर-स्थविर। थेरो जाति-सुय-परियारहिं वृद्धो जो वा गच्छस्स संथितिं करेति ।
जन्म, श्रुत तथा संयम पर्याय में वृद्ध तथा गच्छ में अस्थिरता प्राप्त मुनि को स्थिर करने वाला स्थविर कहलाता है।
(दशअचू. पृ. १५) थेरग-स्थविर। थेरगो दंडधरितग्गहत्थो अत्यन्तदशां प्राप्तः। जो अंतिम दशा को प्राप्त है तथा जो लाठी के सहारे चलता है, वह स्थविर है।
(सूचू.१ पृ. ८४) दंत-दान्त । दंतो इंदिएहिं णोइंदिरहिं य।
जो इंद्रियों तथा नोइंद्रियों का दमन करता है, वह दान्त है। (दशअचू. पृ ९३) दंतवक्क-दान्तवाक्य । दम्यन्ते यस्य वाक्येन शत्रवः स भवति दान्तवाक्यः।
जिसके वचन मात्र से शत्रु दान्त हो जाते हैं, वह दान्तवाक्य कहलाता है। (सूचू.१ पृ.१४८) दंसणविणय-दर्शनविनय। दव्वाण सव्वभावा, ठवदिट्ठा जे जहा जिणवरेहिं ।
__ ते तह सद्दहति नरो, दंसणविणओ भवति तम्हा॥ जिनेश्वर देव के द्वारा द्रव्यों की जितनी पर्यायें जिस प्रकार उपदिष्ट हैं, जो उन पर वैसी ही श्रद्धा करता है, वह दर्शनविनय है।
(दशनि.२९२) दविय-द्रव्य, शुद्ध। दविओ नाम रागद्दोसरहितो। राग-द्वेष रहित चेतना द्रव्य कहलाती है।
(सूचू.१ पृ. १०६) दव्वजिण-द्रव्यजिन। दव्वजिणा जे बाहिं वेरियं वा जिणंति। बाह्य शत्रुओं को जीतने वाले द्रव्यजिन हैं।
(दशअचू. पृ. ११) दव्वपमाद-द्रव्यप्रमाद। दव्वपमादो जेण भुत्तेण वा पीतेण वा पमत्तो भवति।
जिस द्रव्य के खाने अथवा पीने से व्यक्ति प्रमत्त होता है, वह द्रव्य-प्रमाद है। (उचू. पृ.१०२)
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