Book Title: Niryukti Panchak Part 3
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 771
________________ नियुक्तिपंचक जो मन से असत् संकल्प या चिन्तन नहीं करता तथा वचन से भी कार्यवश ही बोलता है, वह गुप्त कहलाता है। (दशजिचू पृ. २८८) गुरु-गुरु। गृणंति शास्त्रार्थमिति गुरवः। जो शास्त्र के अर्थ को अभिव्यक्ति देते हैं, वे गुरु हैं। (उचू. पृ. २) गेय-गेय। गेयं णाम यद् गीयते सरसंचारेण। स्वरसंचार से गाया जाने वाला गेय कहलाता है। (सूचू.१ पृ. ४) गोट्ठी-गोष्ठी। समवयसां समुदायो गोष्ठी। समान वय वालों का समुदाय गोष्ठी है। (दशहाटी. प. २२) गोत्त-गोत्र। प्रधानमप्रधानं वा करोतीति गोत्रं । जो व्यक्ति को प्रधान या अप्रधान बनाता है, वह गोत्र है। (उचू.पृ. २७७) गोयम-गोतम । गोतमा णाम पासंडिणो मसगजातीया, ते हि गोणं णाणाविधेहिं उवाएहि दमिऊण गोणपोतगेण सह गिहे धाणं ओहारेंता हिंडंति। मशकजातीय अन्यतीर्थिकों का एक समूह जो छोटे बैल के साथ घूम-घूमकर अनेक उपायों से घरों से धान्य एकत्रित करते हैं। (सूचू.१ पृ. १५२) गोरहग-गोरथक। गाओ जे (रहजोग्गा) रहमिव वा धावंति ते गोरहगा भण्णंति । रथयोग्य बैल जो रथ की भांति दौड़ते हैं, 'गोरथक' कहलाते हैं। (दशजिचू. पृ. २५३) गोव्वतिग-गोव्रतिक। गोव्वतिगा वि धीयारप्राया एव, ते च गोणा इव णत्थितेल्लगा रंभायमाणा गिहे गिहे सुप्पेहि गहितेहि धणं ओहारेमाणा विहरंति। सांड की भांति गर्जते हुए जो छाज लेकर घर-घर में धान्य मांगते फिरते हैं, वे गोव्रतिक कहलाते हैं। (सूचू.१ पृ. १५२) घसा-पोल। घसा नाम जत्थ एगदेसे अक्कममाणे सो पदेसो सव्वो चलइ सा घसा भण्णइ। एक प्रदेश को आक्रान्त करने पर जहां सारे प्रदेश हिलने लगें, वह घसा-पोल कहलाती (दशजिचू. पृ. २३१) चंगबेर-काष्ठपात्री। चंगबेरं कट्ठमयं भायणं भण्णइ। काष्ठमयी पात्री को चंगबेर कहा जाता है। (दशजिचू.पृ. २५४) चंडाल-चाण्डाल। सुद्देण बंभणीए जाओ चंडालोत्ति पवुच्चइ। शूद्र पुरुष से ब्राह्मण स्त्री में उत्पन्न संतान चांडाल कहलाती है। (आचू. पृ. ६) चक्खुसंधण-चक्षुसंधान। चक्षुसंधणं णाम दिट्ठीए दिट्ठिसमागमो। आंख से आंख मिलाना चक्षुसंधान है। (सूचू.१ पृ. १०५) चरित्तविणीय-चारित्रविनीत । अट्ठविधं कम्मचर्य, जम्हा रितं करेति जयमाणो। नवमन्नं च न बंधति, चरित्तविणीओ भवति तम्हा॥ जो आठ प्रकार के कर्मचय को रिक्त करता है और नया कर्म नहीं बांधता, वह चास्त्रिविनीत (दशनि.२९४) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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