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परिशिष्ट ६ : कथाएं
हूं अतः आप मेरी यानशाला में पधारें। कंडरीक उनकी यानशाला में चिकित्सालाभ करने लगे । मनोज्ञ एवं सरस आहार करने से शीघ्र ही उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट हो गया। स्वस्थ होने के बाद मुनि कंडरीक उस मनोज्ञ भोजन-पान में आसक्त हो गये और उग्रविहार छोड़कर वहीं रहने लगे। एक दिन राजा पुंडरीक ने उन्हें समझाने के लिए विविध दृष्टान्त दिए तथा संसार की नश्वरता एवं कामभोग के कटुविपाक का बोध कराया। संकोचवश कंडरीक ने वहां से विहार कर दिया लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वह श्रामण्य से विचलित हो गया ।
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वह अपने आचार्य के पास से विहार कर पुनः पुष्करिणी नगरी में राजा पुंडरीक के भवन की अशोक वाटिका में आकर ठहरा। वहां पृथ्वीशिला पट्ट पर बैठकर चिंतन करने लगा। तभी राजा पुंडरीक की धायमां वहां आई। उसने तत्काल मुनि कंडरीक के आगमन की सूचना राजा पुंडरीक
दी। राजा अपने अंत:पुर के साथ मुनि के दर्शनार्थ आया। राजा पुंडरीक ने देखा कि मुनि कंडरीक मुनिव्रत त्यागकर पुनः राज्य एवं कामभोग का उपभोग करना चाहता है। उसने तत्काल उसका राज्याभिषेक किया और स्वयं पंचमुष्टि लोच कर चातुर्याम धर्म को स्वीकार कर लिया। उसने दीक्षित होकर कंडरीक के भंडोपकरण ग्रहण कर लिए और यह अभिग्रह किया कि मैं स्थविर आचार्य के पास जाकर ही आहार ग्रहण करूंगा । इधर कंडरीक प्रणीत आहार को सम्यक् रूप से पचा नहीं सका अत: विपुल वेदना से अभिभूत हो गया । वह राज्य और अंतःपुर में आसक्त होकर अकाममरण प्राप्त कर सातवीं नरक में उत्पन्न हुआ ।
मुनि पुंडरीक विहार करते हुए स्थविर आचार्य के पास पहुंचे और पुनः चातुर्याम धर्म स्वीकार किया । वे तेले-तेले की तपस्या करने लगे। अरस-विरस आहार से उनके शरीर में विपुल वेदना उत्पन्न हो गयी। अंत समय में आलोचना-प्रतिक्रमण करके उन्होंने समाधि-मरण प्राप्त किया और सर्वार्थसिद्ध देवलोक में देव बने । आगामी भव में महाविदेह क्षेत्र में वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। इस कथानक को सुनकर वैश्रमण देव परम संवेग को प्राप्त हुआ और गौतम को वंदना करके लौट गया ।
प्रातः होते ही गौतम नीचे उतरे। तब तापसों ने कहा- 'हम आपके शिष्य हैं और आप हमारे आचार्य हैं। गौतम स्वामी ने कहा- 'तुम्हारे और हमारे आचार्य त्रैलोक्य गुरु भगवान् महावीर हैं।' तापसों ने आश्चर्य व्यक्त किया- 'क्या आपके भी कोई अन्य आचार्य हैं?' तब गौतम ने भगवान् महावीर का गुणकीर्तन किया और सभी तापसों को प्रव्रजित कर भगवान् की दिशा में चल पड़े। मार्ग में भिक्षावेला के समय गौतम ने पूछा- 'मैं आपके लिए क्या लेकर आऊं ।' उन्होंने दूध की इच्छा व्यक्त की । गौतम सब लब्धियों से सम्पन्न थे । पात्र में मधु संयुक्त दूध लेकर गौतम आए। गौतम को अक्षीणमहानस लब्धि प्राप्त थी अत: सभी तृप्त हो गए। भोजन करते-करते शैवाल और उसके सभी शिष्यों को कैवल्य उत्पन्न हो गया। वे वहां से आगे चले। दत्त तथा उनके शिष्यों को भगवान् के छत्रातिछत्र अतिशय को देखकर कैवल्य उत्पन्न हो गया। कौडिन्य तथा उसके शिष्यों को भगवान् महावीर को देखते ही केवलज्ञान हो गया। सभी भगवान् के पास आए। गौतम ने महावीर की वंदनास्तुति की। वे सभी तापस-मुनि केवलिपरिषद् में चले गए। गौतम ने उन्हें भगवान् को वंदना करने के लिए कहा। भगवान् ने कहा- 'गौतम ! केवलियों की आशातना मत करो।' गौतम ने 'मिच्छामि
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