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नियुक्तिपंचक
२. उद्रायण एवं प्रद्योत
चम्पा नगरी में अनंगसेन नामक स्वर्णकार रहता था। वह स्त्रियों के प्रति बहुत आसक्त था। वह जिस कन्या को देखता,उसकी सुन्दरता पर मुग्ध हो उठता। बहुत सा धन देकर वह उससे विवाह कर लेता। इस प्रकार उसने पांच सौ कन्याओं के साथ विवाह किया। वह उनके साथ काम-भोगों में रत रहता। उसी समय पंचशील नामक द्वीप में विद्युन्माली नामक एक यक्ष का च्यवन हो गया। उसकी दो अग्रमहिषियां थीं-हासा और प्रहासा। भोग की बलवती भावना से प्रेरित होकर वे किसी सुन्दर पुरुष की खोज में निकलीं। उन्होंने अनंगसेन को देखा। विक्रिया के माध्यम से सुन्दर रूप बनाकर अशोक-वाटिका में वे अनंगसेन के समक्ष गयीं। उनकी कामपूरक चेष्टाओं को देखकर अनंगसेन चंचल और उन्मत्त होकर उनकी ओर हाथ फैलाने लगा। उसकी काम-विह्वलता देखकर देवियों ने कहा कि हमें पाने की पहली शर्त यह है कि पंचशील द्वीप में आओ। इतना कहकर वे अदृश्य हो गईं।
अनंगसेन उनके पीछे पागल हो उठा। उसने राजा को प्रेरित कर यह घोषणा करवाई कि जो अनंगसेन को पंचशैल द्वीप में पहुंचाएगा, उसे वह एक करोड़ मुद्रा देगा। एक बूढ़े नाविक ने उस घोषणा को स्वीकार कर कहा कि मैं पंचशील द्वीप में पहुंचा दूंगा। उसने एक करोड़ मुद्राएं ले लीं। पाथेय लेकर नौका पर आरूढ़ होकर दोनों ने गंतव्य की ओर प्रस्थान किया। कुछ दूर जाने पर नाविक ने पूछा-'आगे जल के ऊपर कुछ दिखाई देता है?' अनंगसेन ने नकारात्मक उत्तर दिया। कुछ दूर जाने पर पुनः प्रश्न किया तो अनंगसेन के कहा कि मानव सिर के बराबर कोई कृष्णवर्णी वस्तु नजर आ रही है।
नाविक ने कहा-'यहीं पंचशैल की धारा में स्थित वटवृक्ष है। नौका इसके नीचे से जाएगी। इसके आगे जलावर्त है अतः तुम सावधान होकर इस वृक्ष की शाखा को पकड़ लेना। मैं नौका से जलावर्त में जाऊंगा। जब जल का वेग उतर जाए तब तम पर्वत पर चढकर उस ओर उतर जाना। वहीं पंचशैल द्वीप है। फिर जहां जाना हो वहां चले जाना। संध्याकाल में बड़े-बड़े पक्षी पंचशील द्वीप से यहां आयेंगे और रात्रि-निवास करके वापिस लौटेंगे। तुम उनके पैर पकड़कर पंचशैल द्वीप चले जाना। इतने में नौका वटवृक्ष के पास जा पहुंची। वह शीघ्र वट पर आरूढ़ हो गया और नाविक आगे जलावर्त में चला गया।
नाविक के कथनानुसार अनंगसेन द्वीप में पहुंचकर दोनों यक्षिणियों से मिला और अपनी भावना व्यक्त की। दोनों देवियों ने नकारात्मक उत्तर दिया और कहा-'तुम्हारा यह अशुचि शरीर हमारे परिभोग के योग्य नहीं है। यदि तुम हमें चाहते हो तो बाल-तपस्या और निदान करके यहां जन्म लो तभी तुम हमारे लिए भोग्य और आदेय हो सकते हो।' देवियों ने अतिथि-धर्म का पालन करते हुए दिव्य पत्र, पुष्प, फल आदि से उसका आतिथ्य किया। थकान के कारण वह वहीं शीतल छाया में सो गया। नींद में ही देवियों ने उसे हाथ में उठाया और चम्पानगरी में उसके मकान की
१. दशाश्रुतस्कन्ध की चूर्णि में इस कथा का उल्लेख नहीं है अत: यहां निशीथ चूर्णि के अनुसार कथा का अनुवाद
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