Book Title: Niryukti Panchak Part 3
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 752
________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं जिस रात्रि में गंधहस्ती अनलगिरि ने वीतभय नगरी में प्रवेश किया, उसकी गंध से आलानस्तम्भ में बंधे हाथी पृथ्वी पर लुढ़कने लगे और स्तम्भों को तोड़ने का प्रयत्न करने लगे। मंत्रियों ने सोचा, अनलगिरि अपने खंभे को तोड़ कर यहां आ गया होगा अथवा कोई जंगली हाथी आया होगा। प्रात:काल यथार्थ वृत्तान्त ज्ञात हुआ । गुप्तचरों ने अनलगिरि का मल देखा अतः राजा को निवेदन किया कि रात्रि में राजा प्रद्योत आया था लेकिन वह वापिस चला गया। यह सुनकर राजा ने स्वर्णगुटिका दासी की खोज करायी। ज्ञात हुआ कि मध्यरात्रि में राजा प्रद्योत ने स्वर्णगुटिका दासी का अपहरण कर लिया है। ६२१ देवावतारित प्रतिमा की यह विशेषता थी कि उस पर चढ़ाए गए फूल चंदन की शीतलता के कारण म्लान नहीं होते थे। राजा उद्रायण मध्याह्न में जब देवायतन गया तो फूलों को म्लान देखा । राजा ने चिंतन किया कि यह देवकृत उपद्रव है अथवा देव-प्रतिमा के स्थान पर दूसरी प्रतिमा रख दी है। फूलों को हटाने पर ज्ञात हुआ कि प्रद्योत ने प्रतिमा की भी चोरी की है। कुपित होकर राजा दूत के साथ संदेश भिजवाया कि तुमने दासी की चोरी की इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है लेकिन मेरी प्रतिमा वापिस कर दो। प्रत्युत्तर में राजा प्रद्योत ने कहा कि मैं प्रतिमा भी वापिस नहीं करूंगा। यह बात सुनते ही उद्रायण के रोष का पार नहीं रहा। राजा उद्रायण ने दस राजाओं के नेतृत्व में विशाल सुसज्जित सेना लेकर उज्जैनी की ओर प्रस्थान किया । भयंकर ग्रीष्म ऋतु का समय था । मरुभूमि में पैदल चलने से तथा पानी के अभाव में सारी सेना तीसरे ही दिन व्यथित और दुःखी हो गयी। सेना की यह स्थिति देखकर राजा दुःखी हो उठा । बहुत चिंतन करने पर भी कोई समाधान नहीं मिला। अंत में राजा ने रानी प्रभावती का स्मरण किया। फलस्वरूप प्रभावती का आसन कंपित हुआ। प्रभावती देव ने अवधि ज्ञान से जाना कि राजा उद्रायण अभी आपत्ति में है । देव प्रभाव से खूब वर्षा हुई। कृत्रिम सरोवर बना दिए गए। शीतल वायु बहने लगी । यह देवकृत सरोवर है अतः वहां पुष्कर तीर्थ की स्थापना कर दी। उद्रायण ने उज्जैनी पर चढ़ाई कर दी। अकारण ही अनेक लोगों की मौत को देखकर उद्रायण ने चण्डप्रद्योत से कहा- 'विरोध तो परस्पर हमारा है अतः हम दोनों ही लड़ेंगे। शेष निरपराध जनता को मारने से क्या लाभ?' प्रद्योत ने उद्रायण की बात स्वीकृत कर ली । दूतों के माध्यम से आपस में चिन्तन किया कि युद्ध हाथी से करें, रथ से करें अथवा घोड़ों से? प्रद्योत ने कहलवाया कि तुम्हारे पास श्रेष्ठ हस्ती नहीं है अतः रथ से ही युद्ध करेंगे। लेकिन युद्ध के दिन राजा प्रद्योत हाथी लेकर उपस्थित हुआ । उद्रायण रथ पर आरूढ़ था। शेष सेना दर्शक की भांति मध्यस्थ भाव से युद्ध का नजारा देख रही थी। उद्रायण ने चुनौती देते हुए कहा कि अपने वचन का पालन न करने वाले को जीने का कोई अधिकार नहीं है। प्रथम बार में ही क्षत्रिय शौर्य दिखाते हुए उद्रायण ने चक्रभ्रम की तरह तीर छोड़ा जिससे हाथी के चारों पांव बिंध गए। वह मृत होकर वहीं गिर गया । उद्रायण ने प्रद्योत को हराकर बंदी बना लिया। उज्जैनी पर उद्रायण का अधिकार हो गया। स्वर्णगुटिका दासी को वहीं मार दिया गया। प्रतिमा देवाधिष्ठित थी अतः वहां से वापिस वीतभय ले जाना संभव नहीं हो सका। राजा उद्रायण ने प्रतिबोधित करने के लिए प्रद्योत के ललाट पर 'दासीपति' शब्द अंकित करवा दिया। उद्रायण अपनी सेना के साथ प्रद्योत को बंदी बनाकर ले गया। उस समय तक वर्षा ऋतु प्रारम्भ हो गयी थी। प्रतिदिन दसों मुकुटबद्ध राजा और उद्रायण के आहार करने के पश्चात् प्रद्योत को आहार करवाया जाता था । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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