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परिशिष्ट ६ : कथाएं
करता रहा। राजा ने उसके निवेदन को स्वीकार नहीं किया। अंत में वणिक् राजा के चरणों में गिर पड़ा और गद्गद स्वरों में निवेदन करने लगा। राजा का मन करुणार्द्र हुआ 'और ज्येष्ठ पुत्र को मुक्त करने का आदेश दे दिया । '
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गणधर गौतम और पार्वापत्यीय श्रमण उदक की चर्चा लम्बे समय तक चली। उदक का मन समाहित हो गया। चर्चा सम्पन्न होने के बाद उदक बिना कृतज्ञता ज्ञापित किए ही जाने लगा । गौतम ने कहा- 'उदक! तुम बिना कुछ कहे ही जा रहे हो।' तब उदक ने कहा कि आप क्या कहना चाहते हैं मैं समझ नहीं सका। गौतम ने शिक्षा देते हुए कहा कि लौकिक परम्परा में भी शिक्षागुरु के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है फिर परमार्थ का तो कहना ही क्या? यह सत्य है कि पूज्य व्यक्ति पूजा-प्रतिष्ठा की भावना से दूर रहता है पर व्यवहार में यह अनिवार्य हो जाता है कि पूज्य के उपकार को बहुमान दिया जाए। तुमने इस चर्चा से यथार्थ की अवगति की है। कृतज्ञता ज्ञापित किए बिना तुम्हारा यों ही जाना क्या उचित है ?
उदक को अपने प्रमाद का अहसास हुआ। वह बोला- 'गौतम! तुम्हारे से मैंने परमार्थ का अवबोध किया है। मैं उस तत्त्व के प्रति श्रद्धा व्यक्त करता हूं और चातुर्याम धर्म से पंचयाम धर्म स्वीकार करूं, अप्रतिक्रमण धर्म से सप्रतिक्रमण धर्म में आऊं तथा पार्श्व की परम्परा से महावीर की परम्परा में दीक्षित बनूं, ऐसी मेरी भावना ।' गौतम उदक के साथ भगवान् महावीर के पास आए । उदक ने भगवान को वंदना की और पंचयाम धर्म में प्रव्रजित होने की इच्छा व्यक्त की। भगवान महावीर ने उसे अपने शासन में सम्मिलित कर लिया । '
दशाश्रुतस्कंध -निर्युक्ति की कथाएं
१. क्षमादान : महादान (दुरूतक कुंभकार )
एक कुम्हार मिट्टी के भांडों से गाड़ी भरकर दुरूतक नामक अनार्य गांव में गया। उसके एक बैल का अपहरण करने की इच्छा से गांव के कुछेक लोग कहने लगे कि अरे ! एक आश्चर्य देखो, यह गाड़ी एक बैल से चल रही है। यह सुनकर कुम्हार भी व्यंग्य में बोला- 'देखो ! इस गांव का खलिहान जल रहा है।' कुम्हार जब कार्यवश इधर-उधर गया तब गांव वालों ने उसके एक बैल IT अपहरण कर लिया। कुम्हार के बैल मांगने पर उन्होंने कहा कि तुम एक ही बैल से गाड़ी चला रहे थे। जब उन्होंने बैल वापिस नहीं दिया तो वह कुम्हार प्रतिवर्ष उनका धान्य जलाने लगा। सात वर्ष तक लगातार यह क्रम चला। बाद में एक उत्सव के अवसर पर उस गांव के मुखिया ने घोषणा की - 'जिसका हमने अपराध किया है, उससे हम क्षमा चाहते हैं। इस प्रकार हमारा धान्य नष्ट मत करो।' यह सुनकर कुम्हार ने भी घोषणा की कि मेरा बैल वापिस कर दो। मैं धान्य नहीं जलाऊंगा। बाद में उन दोनों में समझौता हो गया। कुम्हार को बैल वापिस मिल गया। दोनों ने एकदूसरे को क्षमा कर दिया । २
१. सूनि २०५, २०६, सूटी. पृ. २७६ ।
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२. दनि ९३, ९४, दचू.प. ६०, ६१, निभा. ३१८०, ३१८१, चू. पू. १३९ :
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