________________
परिशिष्ट ६ : कथाएं
ही वे लोग उसकी पत्नी के साथ दुराचार करने लगे। स्कन्द श्री पति को उत्तेजित करने के लिए मोहोत्पादक स्त्री शब्दों में विलाप करने लगी ।
अर्जुनमाली यह घृणित दृश्य देख नहीं सका। उसकी आत्मा विद्रोह करने लगी। उसने चिंतन किया-'मैं प्रतिदिन ताजे फूलों से यक्ष की पूजा-अर्चना करता हूं लेकिन फिर भी मैं इसके सामने इतना क्लेश और पीड़ा का अनुभव कर रहा हूँ । यदि यक्ष में कोई शक्ति होती तो इतना क्लेश नहीं पाता। आज यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह केवल काठ की मूर्ति है, मुद्गरपाणी यक्ष की मूर्ति नहीं है।' इन शब्दों को सुनकर यक्ष ने अनुकम्पावश उसके शरीर में प्रवेश कर लिया । यक्ष के प्रभाव से उसके सारे बंधन तड़-तड़ टूट गए। उसने लोहमय मुद्गर लेकर उन छहों पुरुषों तथा अपनी पत्नी को यमलोक पहुंचा दिया। अब वह प्रतिदिन छह पुरुष और एक स्त्री को मारने लगा। जब तक वह सात व्यक्तियों को नहीं मार देता, राजगृह नगर से बाहर नहीं निकलता था ।
एक बार राजगृह नगरी में भगवान् महावीर समवसृत हुए। उस समय सुदर्शन भगवान् महावीर को वंदना करने निकला। रास्ते में अर्जुनमाली ने उसे देख लिया । वह सुदर्शन की ओर दौड़ा। सुदर्शन की दृष्टि अर्जुन पर पड़ी। सुदर्शन ने अर्हत्, सिद्ध, साधु और धर्म की शरण लेकर वहीं सागारिक अनशन लेकर कायोत्सर्ग कर लिया और नमस्कार मंत्र का जाप करने लगा। अर्जुनमाली बहुत परिश्रम करके भी सुदर्शन का अनिष्ट नहीं कर सका। वह उसके चारों ओर घूमता हुआ परिश्रान्त हो गया। वह उस विशिष्ट पुरुष को अनिमेष दृष्टि से देखने लगा । यक्ष अर्जुन के शरीर से निकल मुद्गर लेकर अपने स्थान पर लौट गया। अर्जुनमाली वहीं भूमि पर गिर पड़ा। सुदर्शन ने स्नेह - पूर्वक उसे उठाया और पूछा- तुम कहां जा रहे हो? सुदर्शन ने कहा- 'भगवान् महावीर को वंदना करने जा रहा हूं।' अर्जुनमाली भी उसके साथ भगवान् को वंदना करने गया । महावीर के मुख से देशना सुनकर वह वहीं प्रव्रजित हो गया। जब वह भिक्षा के लिए घूमता तब लोग कहते - 'यह हमारे स्वजन का घातक है', इस प्रकार वह अनेक प्रकार से तिरस्कृत होता। लेकिन मुनि अर्जुनमाली ने समतापूर्वक आक्रोश वचन सहन किए और कैवल्य प्राप्त कर लिया।
५०७
१५. वध परीषह (स्कन्दक)
श्रावस्ती नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था । उसकी पटरानी धारिणी तथा युवराज स्कन्दक था। राजा की पुत्री का नाम पुरंदरयशा था । उसका विवाह कुंभकारकट नगर में दंडकी राजा के साथ किया गया। दंडकी राजा के पुरोहित का नाम पालक था। एक बार श्रावस्ती नगरी मुनिसुव्रतस्वामी पधारे। उनके समवसरण में अनेक व्यक्ति उपस्थित हुए। स्कन्दक भी देशना सुनने गया। धर्मवार्ता सुनकर उसने श्रावक व्रत स्वीकार कर लिये ।
एक बार पालक पुरोहित दूत के रूप में श्रावस्ती नगरी आया। सभा के बीच में ही वह जैन साधुओं की निंदा करने लगा। उस समय कुमार स्कन्दक ने अपनी तेजस्वी वाणी से उसे निरुत्तरित कर राज्य से बाहर निकाल दिया। इस घटना से उसके मन में स्कन्दक के प्रति रोष उमड़ पड़ा। उसी दिन से पालक गुप्तचरों के माध्यम से स्कन्दक का छिद्रान्वेषण करने लगा ।
१. उनि. १११, उशांटी.प. ११२ ११४, उसुटी. प. ३४, ३५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org