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नियुक्तिपंचक
३. अनर्थ का मूल-धन
एक नगर में दो भाई रहते थे। वे बहुत गरीब थे। एक बार वे धनार्जन के लिए मालव देश से सौराष्ट्र गए। वहां उन्होंने एक हजार रुपए कमाए। जब वे पुनः अपने घर लौटने लगे तो रुपयों की नौली की बारी-बारी से सुरक्षा करने लगे। एक बार जब एक भाई के पास नौली थी तब दूसरा सोचने लगा-'अच्छा हो इसको मार दूं, जिससे ये सारे रुपये मुझे मिल जाएंगे।' ऐसा ही चिन्तन दूसरे भाई के दिमाग में भी आया। परस्पर एक दूसरे को मारने की चिन्ता में वे चले और अपने ग्राम के समीप बहने वाली नदी के तट पर विश्राम करने ठहर गए।
सहसा छोटे भाई के विचार बदले और वह रोने लगा। दूसरे भाई ने कारण पूछा तो वह बोला-'मुझे धिक्कार है । मैं धन के लिए अपने भाई को मारने के लिए भी तैयार हो गया।' दूसरे भाई ने कहा-'मेरे दिमाग में भी तुझे मारने की बात आई थी पर अब मेरा विचार बदल गया है।' इस धन के कारण ही हमारे मन में बुरे विचार आए ऐसा सोचकर उन दोनों भाइयों ने रुपयों की नौली को नदी में बहा दिया । वहां से चलकर वे अपने घर पहुंच गए।
नदी में गिरी हई उस नौली को एक मत्स्य निगल गया । प्रातः धीवर ने मछलिया पकड़ने के लिए नदी में जाल फेंका। संयोगवश वही मत्स्य उसके जाल में फस गया और मर गया। धीवर उसे बाजार में बेचने के लिए ले आया। इधर उन दोनों भाइयों की माता ने अपनी लड़की से कहा--'आज तुम्हारे भाई आए हैं अत उनके लिए मत्स्य ले आओ।' वह गई और संयोगवश उसी मत्स्य को ले आई, जिसके पेट में वह नौली थी।
मत्स्य को काटते समय लड़की ने वह नौली देखी और उसे अपनी गोद में छिपा ली। उसकी यह क्रिया बढ़ी मां देख रही थी। उसने पूछा-'बेटी! तुमने गोद में क्या छिपाया है ?' लोभवश लड़की ने कुछ नहीं बताया। बूढ़ी मां उठी और लड़की के पास आकर छीना-झपटी करने लगी। लड़की को आवेश आ गया। उसने अपनी बढ़ी मां के मर्मस्थल पर ऐसा प्रहार किया कि वह तत्काल मर गई। भाई बाहर बैठे थे । उन्होंने मां बेटी की तकरार सुनी। वे अन्दर आए । नौली को जमीन पर पड़ी देख वे मां की मृत्यु का कारण जान गए । 'यह धन दोष-बहुल है। इसने हमारी नहीं तो मां की जान ले ली।' यह सोच उनका मन उद्विग्न हो गया। वे विरक्त हो गए। उस लड़की का विवाह कर वे प्रवजित हो गए।'
४. क्षेत्र और काल अपाय (दशाहवर्ग और द्वैपायन ऋषि)
दशार्ह हरिवंश में उत्पन्न राजा थे। कंस ने मथुरा नगरी का विनाश कर दिया । इधर राजा जरासंध का भय बढ़ा तब उस क्षेत्र को अपाय-बहुल समझकर दशाहवर्ग मथुरा से चलकर द्वारवती नगरी में आ गए।
एक बार भगवान् कृष्ण ने अरिष्टनेमि से पूछा-भगवन् ! द्वारवती (द्वारिका) का विनाश कब होगा? भगवान अरिष्टनेमि ने उत्तर दिया-'द्वैपायन ऋषि के द्वारा इस नगरी का विनाश बारह वर्षों में होगा। द्वैपायन ऋषि ने उद्योतवरा नगरी में यह बात कर्णकणिकया सुनी। 'मैं इस नगरी का विनाशक न बनं, अत: इस कालावधि तक कहीं अन्यत्र चला जाऊं,' यह सोच वे द्वारिका
१. दशनि ५१, अच पृ. २१, हाटी प. ३५,३६ ।
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