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परिशिष्ट ६
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ने तत्काल कहा-'राजन् ! यह जिस प्रकार के आदमी की बात कह रहा है, वैसा यह स्वयं है। दूसरा वैसा मिलना कठिन है । तब राजा ने उसी कापालिक को जीवित ही वहां गढवा दिया।
____ नीतिकार कहते हैं ऐसा उपाय नहीं बताना चाहिए जिससे स्वयं को मरना पड़े।' १७. व्यसनों की श्रृंखला (बौद्ध भिक्षु)
कोई बौद्ध भिक्षुक हाथ में जाल लेकर मत्स्य मारने के लिए चला । रास्ते में एक धूर्त मिला । उसने कहा-आचार्य ! आपकी कंथा छिद्रों वाली है। भिक्षु बोला-'यह तो मछलियों को पकड़ने का जाल है।'
धूर्त-क्या आप मछली खाते हैं ? भिक्षु-हां, मैं उन्हें मद्य के साथ खाता हूं। धूर्त-क्या आप मदिरा भी पीते हैं ? भिक्षु-मैं अकेला मदिरा नहीं पीता, वेश्या के साथ पीता हूं। धूर्त-क्या आप वेश्या के पास भी जाते हैं ? भिक्षु---शत्रुओं के गले पर पैर रखने के लिए वहां भी जाता हूं। धूर्त-क्या आपके शत्रु भी हैं ? भिक्षु-हां, जिनके घरों में मैं सेंध लगाता हूं, वे मेरे शत्रु हैं । धूर्त-क्या आप चोर हैं ? भिक्षु-जुए में धन चाहिए उसके लिए चोरी करता हूं। धूर्त--तो आप जुआरी भी हैं ?
भिक्षु-हां, क्योंकि मैं दासी-पुत्र हूं।' १८. अयथार्थ आश्चर्य
एक देवकुल में कुछ कार्पटिक मिले और बोले--किसी ने घूमते हुए कोई आश्चर्य देखा हो तो बताएं। उनमें से एक कार्पटिक बोला--मैंने देखा है पर यहां कोई श्रमणोपासक नई बताऊं । शेष कार्पटिकों ने कहा-'यहां श्रमणोपासक नहीं है।' इसके बाद वह बोला
'पूर्व वैतालिक में मैं एक समुद्रतट पर घूम रहा था। वहां एक बहुत बड़ा वृक्ष था। उस वृक्ष की एक शाखा समुद्र में थी और एक शाखा स्थलभाग में। उसके जो भी पत्ते पानी में गिरते वे जलचर जीव बन जाते और जो स्थल में गिरते वे स्थलचर जीव बन जाते।'
सुनने वाले कार्पटिक बोले--'अहो ! आर्य भद्रारक ने बहुत बड़ा आश्चर्य बताया।' वहां एक कापटिक श्रावक भी था। उसने पूछा जो पत्ते मध्य भाग में गिरते उनका क्या होता? वह कार्पटिक क्षुब्ध होकर बोला-'मैंने पहले ही कह दिया था कि यहां श्रावक होगा तो मैं नहीं बताऊंगा।' १६. स्वर्ण खोरक
___ एक नगर में एक परिव्राजक रहता था। वह एक स्वर्ण-खोरक (तापस-भाजन) लेकर १. दशनि ७९, अचू पृ. २६, हाटी प. ५३,५४ । ३. दशनि ८१, अचू पृ. २७, हाटी प. ५५ । २. दशनि ७९, अचू पृ. २७, हाटी प. ५४ ।
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