________________
४९०
नियुक्तिपंचक
दूसरे वर्ष वे सभी साधु दुर्भिक्ष होने के कारण पुनः उज्जयिनी नगरी की ओर प्रस्थित हुए। मार्ग में वही अटवी पुनः आयी। साधुओं ने उस बालमुनि को देखा और सारी स्थिति की अवगति चाही। मुनि हस्तिभूति ने कहा-'मेरे पिता भी अभी तक जीवित है। वे उस कंदरा में हैं।' साधु वहां पहुंचे। उनका शुष्क शरीर देखा। मुनियों ने जान लिया कि स्वर्गस्थ मुनि ने देव होकर मोहानुकम्पा से पुनः इस शरीर में प्रवेश किया है। वे साधु उस बाल मुनि को अपने साथ ले गए। देवता भी अपने स्थान पर वापिस चला गया।
३. पिपासा परीषह
उज्जैनी नगरी में धनमित्र नामक वणिक् रहता था। उसके आठ वर्ष के पुत्र का नाम धनशर्मा था। अपने पुत्र के साथ धनमित्र दीक्षित हो गया। एक बार वे दोनों मुनि अन्यान्य मुनियों के साथ मध्याह्न में विहार कर एडकाक्षपथ की ओर जा रहे थे। मार्ग में क्षुल्लक मुनि को प्यास लगी। वह प्यास से व्याकुल हो गया और धीरे-धीरे चलने लगा। उसका पिता धनमित्र मुनि पीछे से आ रहा था। अन्य मुनि आगे चले गए। विहार के बीच एक नदी आयी। धनमित्र ने पुत्रानुराग से कहा-'आओ वत्स! यहां पानी पी लो फिर प्रायश्चित्त कर लेना।' यह मेरे सामने पानी पीने में संकोच कर रहा है। यदि मैं दूर चला जाऊं तो यह पानी पी लेगा।' ऐसा सोच धनमित्र ने नदी पार कर ली।
- एकान्त पाकर वह छोटा मुनि नदी के पास गया। पानी से अंजलि भर ली। उसी समय उसने चिंतन किया—'मैं असंख्य जीवों से युक्त यह पानी कैसे पी सकता हूं? इससे कितने जीवों को कष्ट होगा? जिनेश्वर भगवान ने एक बंद पानी में असंख्य जीव बताए हैं। यह सोचकर बालमनि ने दृढ वैराग्य भाव से पानी नहीं पीया। अत्यधिक प्यास के कारण वह बालमुनि शुभ अध्यवसायों से वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गया। देवगति में उत्पन्न होकर उसने अपना पूर्वभव तथा मृत शरीर को देखा। उसमें प्रविष्ट होकर वह अपने पिता मुनि के पीछे-पीछे चलने लगा। पिता मुनि भी उसे देख आश्वस्त हो गये।
उस देव ने समस्त प्यासे मुनियों की रक्षा के लिए अनुकंपावश वैक्रिय शक्ति से गोकुल की विकुर्वणा की। साधुओं ने वहां छाछ, दूध आदि ग्रहण किया। देव रूप बाल मुनि हर स्थान पर गोकुल की विकुर्वणा करने लगा। इस प्रकार वे सभी मुनि सुखपूर्वक जनपद के निकट पहुंच गए।
जनपद आने के अंतिम विहार के समय देव ने अपना परिचय कराने के लिए किसी साधु का आसन विस्मत करवा दिया। एक साधु वहां वापिस आया। वहां उसने आसन तो देखा लेकिन गोकुल कहीं दिखाई नहीं दिया। वापिस आकर उसने सारी बात साधुओं को कही। साधुओं ने जाना कि यह देवकृत चमत्कार था। बाल मुनि देव रूप में प्रकट हुआ। उसने पिता को छोड़कर सबको वंदना की। साधुओं के द्वारा कारण पूछने पर उसने सारी घटना बतायी। देव ने कहा-'यदि मैं अपने पिता के कहने से पानी पी लेता तो अनन्त संसार में भ्रमण करता तथा विराधक बन जाता। इन्होंने मुझे सचित्त जल पीने की प्रेरणा दी इसलिए मैंने वंदना नहीं की।' ऐसा कहकर देव पुनः स्वर्गलोक चला गया।
१. उनि.९०, उशांटी.प.८५, ८६, उसुटी.प. १८। २. उनि .९१, उशांटी.प.८७, ८८, उसुटी.प. १९ । Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only