________________
दशवकालिक-नियुक्ति की कथाएं
१. शरयंभव और मनक
अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के तीसरे पट्टधर आर्य प्रभव थे। एक बार उनके मन में चितन उत्पन्न हुआ कि मेरे बाद गण को धारण करने में कौन समर्थ होगा? उन्होंने अपने गण और संघ पर दृष्टि डाली पर कोई भी परम्परा को अविच्छिन्न निभाने वाला पट्टधर नहीं मिला। फिर उन्होंने गृहस्थ समाज पर दृष्टि टिकाई। उपयोग लगाने पर उन्होंने राजगह नगर में शय्यंभव ब्राह्मण को यज्ञमंडप में यज्ञ करते देखा। आचार्य प्रभव राजगृह नगरी में आए और अपने शिष्यों को यज्ञ-मंडप में भिक्षार्थ भेजा। आचार्य प्रभव ने कहा-'वहां तुम्हें जब प्रवेश के लिए निषेध करें तो तुम कहना-'अहो ! कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते-खेद है, सत्य को नहीं जानते ।' साधु वहां गए उन्हें द्वार पर ही रोक दिया गया तब उन्होंने कहा-'अहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते ।' शय्यंभव ब्राह्मण द्वार पर ही खड़ा था। उसने यह बात सुनी । उसने सोचा-ये उपशांत तपस्वी असत्यभाषण नहीं करते अतः तत्काल अपने अध्यापक के पास जाकर उसने पूछा-'तत्त्व क्या है ?' अध्यापक ने कहा'वेद।' तब शय्यंभव ने म्यान से तलवार निकालकर क्रोध में आकर कहा-'यदि तुम मुझे सही तत्त्व नहीं बताओगे तो मैं तुम्हारा सिर काट दूंगा। तब अध्यापक बोला-'मेरा समय पूरा हो गया है। वेदार्थ में यह प्रतिपादित है कि सिरच्छेद का प्रसंग उपस्थित हो जाने पर सत्य की अभिव्यक्ति कर देनी चाहिए। अब मुझे यथार्थ का गोपन नहीं करना चाहिए ।' अध्यापक ने कहा-इस स्तूप के नीचे एक स्वर्णमयी अर्हत् प्रतिमा है अत: आर्हत धर्म तत्त्व है। तब शय्यंभव अध्यापक के चरणों में गिर पड़े। शय्यंभव ने यज्ञवाद के सारे उपस्कर अध्यापक को दे दिए । शय्यंभव उन साधुओं की गवेषणा करते हुए आचार्य के पास पहुंच गए । आचार्य को वंदना करके साधुओं को कहा- मुझे धर्म का उपदेश दो।' आचार्य ने उपयोग लगाया और उन्हें पहचान लिया । तब आचार्य ने उन्हें साधु-धर्म की जानकारी दी । शय्यंभव संबुद्ध होकर प्रव्रजित हो गए । कालान्तर में
If हुए। जब वे प्रवजित हुए तब उनकी भार्या गर्भवती थी। शय्यंभव के प्रवजित हो जाने पर लोग यह कहते-अरे, देखो, यह अपनी तरुण पत्नी को छोड़कर प्रव्रजित हो गया है। यह निःसंतान है । वे लोग उसकी पत्नी को पूछते---- 'क्या गर्भस्थ कुछ है ?' वह कहती-प्रतीत होता है कि मनाक्-कुछ है। समय बीता । उसने एक पत्र को जन्म दिया। बारह दिन बीतने पर स्वजनों ने पुत्र का नाम 'मनक' रखा क्योंकि गर्भकाल में स्वजनों द्वारा पूछने पर वह कहती थी-'मणगं' अर्थात् कुछ है।
___ जब बालक मनक आठ वर्ष का हुआ तब उसने अपनी मां से पूछा-'मेरे पिता कौन हैं ?' वह बोली-'तम्हारे पिता प्रवजित हो गए । ज्ञात नहीं है अब वे कहां हैं ?' बालक अपने पिता की
१. आगे अनुवाद में एक और दो कथा के नम्बर नहीं लगे हैं। वहां १ नम्बर की कथा को कथा
सं० ३ पर पढ़ें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org