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नियुक्तिपंचक
८५. आचारप्रणिधि के ये चार अधिकार हैं-षड्काय, पांच समितियां, तीन गुप्तियां और हा प्रकार की प्रणिधियां । नौवां अध्ययन : विनयसमाधि
२८६. 'विनय' और 'समाधि'-इन दोनों पदों के चार-चार निक्षेप हैं। द्रव्यविनय में तिनिश (वक्ष विशेष) और स्वर्ण आदि के उदाहरण दिए जाते हैं।
२८७. भावविनय के पांच प्रकार हैं-लोकोपचार विनय, अर्थ निमित्तक विनय, कामहेतुक विनय, भयनिमित्तक विनय और मोक्षनिमित्तक विनय ।
२८८. लोकोपचार विनय के पांच प्रकार हैं-अभ्युत्थान, हाथ जोड़ना, आसन देना, अतिथि पूजा और वैभव के अनुसार देवपूजा।
२८९ अर्थ की प्राप्ति के लिए राजा आदि के पास रहना, उनकी इच्छा का अनुवर्तन करना, देशकालदान-राजा आदि को देश, काल आदि के विषय में सुझाव देना, अभ्युत्थान करना, हाथ जोड़ना, आसनदान आदि-यह अर्थविनय है।
२९०,२९१. इसी प्रकार कामविनय और भयविनय भी ज्ञातव्य है। मोक्षविनय के पांच प्रकार ये हैं --दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और औपचारिक विनय ।
२९२. जिनेश्वर देव के द्वारा द्रव्यों की जितनी पर्यायें जिस प्रकार उपदिष्ट हैं उन पर वैसी ही श्रद्धा रखने वाला मनुष्य दर्शनविनय से संपन्न होता है।
२९३. ज्ञानी ज्ञान को ग्रहण करता है, गहीत ज्ञान का प्रत्यावर्तन करता है, ज्ञान से कार्य संपादित करता है। इस प्रकार ज्ञानी नए कर्मों का बंध नहीं करता । वह ज्ञान विनीत अर्थात् ज्ञान से कर्मों का अपनयन करने वाला होता है।
२९४. चारित्र विनय से युक्त संयम में यतमान मुनि आठ प्रकार के कर्मसमूह को रिक्त करता है और दूसरे नए कर्मों का बंध नहीं करता । वह चारित्रविनीत अर्थात् चारित्र से कर्मों का अपनयन करने वाला होता है।
२९५. तपोविनय में निश्चलबुद्धि वाला जीव तपस्या से अज्ञान को दूर करता है तथा आत्मा को स्वर्ग और मोक्ष के निकट ले जाता है। वह तपोविनीत अर्थात् तपस्या से कर्मों का अपनयन करने वाला होता है।
२९६. औपचारिक विनय संक्षेप में दो प्रकार का है-प्रतिरूपयोगयोजनविनय तथा अनाशातनाविनय ।
२९७. प्रतिरूपयोगविनय के तीन प्रकार हैं- कायिक योग, वाचिक योग तथा मानसिक योग । कायिकयोगविनय के आठ प्रकार, वाचिकयोगविनय के चार प्रकार और मानसिकयोगविनय के दो प्रकार हैं। उनकी प्ररूपणा इस प्रकार है
२९८. कायविनय के आठ प्रकार हैं-- अभ्युत्थान, अंजलीकरण, आसनदान, अभिग्रह, कृतिकर्म--वन्दन, शुश्रूषा, अनुगमन और संसाधन ।
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