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नियुक्तिपंचक
३६५,३६६. संयोगवश दोनों लड़कों ने वहां श्रमणों को देखा। जातिस्मृति ज्ञान से प्रबुद्ध हुए। फिर उन्होंने अपने माता-पिता को प्रतिबोध दिया। कमलावती रानी प्रबुद्ध हुई। उसने इषुकार राजा को प्रबोध दिया। इस प्रकार सीमाधर राजा इषुकार, भृगु पुरोहित, भृगुपत्नी वाशिष्ठी, राजपत्नी कमलावती और दोनों भृगुपुत्र-ये छहों व्यक्ति प्रवजित होकर परिनिर्वृत हो गए।'
पन्द्रहवां अध्ययन : सभिक्षुक
३६७,३६८. भिक्षु शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य भिक्षु के दो भेद हैं-आगमतः, नो-आगमतः । आगमतः के तीन भेद हैं-ज्ञशरीर, भव्यशरीर और तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त भिक्षु निह्नवादि हैं । जो क्षुत्-कर्म का भेदन करता है, वह भावभिक्षु है ।
३६९. भेत्ता, भेदन और भेत्तव्य-इन तीनों के दो-दो भेद हैं-द्रव्य और भाव ।
३७०. द्रव्य-भेत्ता है तक्षक, भेदन है परशु और भेत्तव्य है काष्ठ। भाव-भेत्ता है साधु, भेदन है तपस्या और भेत्तव्य हैं आठ प्रकार के कर्म ।
३७१. राग, द्वेष, तीन करण, तीन योग, गौरव, शल्य, विकथा, संज्ञा, क्षुत्-आठ प्रकार के कर्म, कषाय और प्रमाद-ये सभी क्षुत् हैं।
३७२. जो सुव्रती ऋषि इन क्षुत् शब्द वाच्य अवस्थाओं का भेदन करते हैं, वे कर्मग्रंथि का भेदन कर अजरामर स्थान-मोक्षपद को प्राप्त होते हैं।
सोलहवां अध्ययन : ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान
३७३. एक के बिना दश नहीं होता अतः एक के ये निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, मातृकापद, संग्रह, पर्याय और भाव-ये सात पृथक्-पृथक् होते हैं ।
३७४. दश शब्द के छह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । दश प्रादेशिक स्कन्ध द्रव्यदश है। अवगाहना स्थिति से दश प्रदेशावगाढ़ स्कन्ध क्षेत्रदश है। दश समय की स्थिति कालदश है । दश संख्या से विवक्षित पर्याय भावदश है।
३७५. ब्रह्म शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। किसी की ब्रह्म संज्ञा नामब्रह्म है। स्थापना ब्रह्म में ब्राह्मण की उत्पत्ति तथा द्रव्यब्रह्म में अज्ञानियों का वस्तिनिग्रह ज्ञातव्य
३७६. ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए वस्तिनिग्रह करना भावब्रह्म है। उसके लिए इस अध्ययन में विविक्त-शयनासनसेवन आदि जो स्थान निरूपित हैं, उनका वर्जन करना चाहिए।
३७७. चरण शब्द के छह निक्षेपों में द्रव्यचरण है-गतिरूप चरण तथा भक्षणरूप चरण । जिस क्षेत्र और काल में चरण की व्याख्या की जाती है, वह क्षेत्रचरण और कालचरण है। मूल और उत्तर गुणों का आचरण भावचरण है।
१.देखें परि० ६, कथा सं० ५७
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