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नियुक्तिपंचक २१३. सुप्त एवं मत्त व्यक्ति के दुःख का निर्देश । २४७,२४८. क्षेत्रचार, भावचार आदि का स्वरूप । २१४. जागृत एवं विवेकी व्यक्ति की दुःख से मुक्ति। २४९. मुनि के आचार का निर्देश । चौथा अध्ययन : सम्यक्त्व
छठा अध्ययन : धुत २१५,२१६. सम्यक्त्व अध्ययन के उद्देशकों के विषयों .
२५०,२५१. धुत अध्ययन के उद्देशकों की विषय-वस्तु का संक्षेप में संकेत ।
। २१७. सम्यक् शब्द के निक्षेप।
का संक्षिप्त कथन । २१८.
२५२. द्रव्य सम्यक् का स्वरूप ।
भावधुत का स्वरूप । २१९. भाव सम्यक के भेद ।
सातवां अध्ययन : महापरिज्ञा २२०,२२१. धार्मिक क्रिया करते हए भी मिथ्यादष्टि की।
२५३-६३. महापरिज्ञा अध्ययन के विषयों का निर्देश । सिद्धि संभव नहीं।
२६४. पाहण्ण और परिमाण शब्द के निक्षेप का २२२. सम्यग्दर्शन की महत्ता ।
कथन। २२३,२२४. गुणस्थानों का क्रमारोह ।
२६५. प्रधान शब्द के निक्षेप तथा अर्थ-कथन । २२५. श्रमण के लिए माया न करने का निर्देश ।।
महद् शब्द के निक्षेप तथा अर्थ-कथन । २२६.
तीर्थंकरों द्वारा तीनों कालों में अहिंसा के उपदेश का कथन ।
२६७,२६८. परिज्ञा शब्द के निक्षेप तथा उनका स्वरूप । २२७. षटकाय जीवों की सर्वथा हिंसा न करने का
२६९. महापरिज्ञा की स्पष्टता । उपदेश ।
२७०. देवी, मानुषी तथा तिर्यञ्च स्त्री का सर्वथा . २२८-३२. रोहगुप्त की कथा का संकेत ।
त्याग। २३३.२३४. कर्मबंधन में मिट्टी के दो गोलकों का आठवां अध्ययन : विमोक्ष
दृष्टांत । २३५. कर्मक्षय करने में शुष्क काष्ठ की उपमा। २७१-७५. विमोक्ष अध्ययन के उद्देशकों के विषयों का
संक्षेप में निर्देश। पांचवां अध्ययन : लोकसार
विमोक्ष शब्द के छह प्रकार से निक्षेप । २३६-३८. लोकसार अध्ययन के उद्देशकों के विषयों का
२७७,२७८. द्रव्यविमोक्ष तथा भावविमोक्ष के भेद । संक्षिप्त कथन।
२७९,२८०. बंध तथा मोक्ष का स्वरूप । २३९. प्रस्तुत अध्ययन के नाम का कारण तथा लोक
२८१. भाव विमोक्ष की परिभाषा । और सार शब्द के निक्षेप ।
२८२. समाधि-मरण मरने का निर्देश । २४०. द्रव्यसार की व्याख्या।
२८३. सपराक्रम मरण में आर्यवज्र का २४१. भावसार का स्वरूप ।
उदाहरण। २४२. लोक में ज्ञान , दर्शन चारित्र ही सार । २८४. अपराक्रम मरण में उदधि आचार्य का २४३. शंका छोड़कर सारपद -ज्ञान-दर्शन स्वीकार
उदाहरण । करने का संकेत ।
२८५
व्याघातिम मरण में तोसलि आचार्य का २४४. लोक आदि का सार क्या है ?
उदाहरण। २४५. लोक का सार धर्म, धर्म का सार ज्ञान, २८६. अव्याघातिम मरण का प्रतिपादन ।
ज्ञान का सार संयम तथा संयम का सार २८७. द्रव्य संलेखना में कथा का निर्देश । है-निर्वाण ।
२८८-९१. संलेखना के क्रम का निर्देश । चार, चर्या शब्द के एकार्थक तथा निक्षेप। २९२. तपःकर्म पंडित के विषय में जिज्ञासा ।
२४६.
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