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सूत्रकृतांग नियुक्ति
१३५. गणधरों ने भावआदि के दो प्रकार बतलाए हैं-आगमतः तथा नोआगमतः । नोआगमतः भावआदि के पांच प्रकार हैं-(प्राणातिपात विरमण, मृषावादविरमण, अदत्तादानविरमण, मैथुनविरमण, परिग्रह विरमण)।
१३६. आगमतः भावआदि है-गणिपिटक, द्वादशांगी । द्वादशांगी के आदिग्रन्थ का आदिश्लोक, उसका आदिपद, उसका आदिपाद, उसका आदिअक्षर-ये सारे भावआदि हैं। सोलहवां अध्ययन : गाथा षोडशक ।
१३७. गाथा शब्द के चार निक्षेप हैं—नामगाथा, स्थापनागाथा, द्रव्यगाथा, भावगाथा । द्रव्यगाथा है-पुस्तक-पन्नों में लिखित अक्षर ।
१३८. क्षायोपशमिक भाव से निष्पन्न जो साकारोपयोग गाथा के प्रति व्यवस्थित है, वह भावगाथा है। वह मधुर उच्चारण से युक्त होती है इसलिए उसे गाथा कहा जाता है।
१३९ जहां बिखरे अर्थों को पिंडीकृत–एकत्रित किया जाता है अथवा जो सामुद्रिकछन्द में निबद्ध होती है, उसे गाथा कहा जाता है। इसका दूसरा निरुक्त-तात्पर्यार्थ यह है जो गाया जाता है अथवा जो गाथीकृत है, वह गाथा है।
१४०. पूर्व के पन्द्रह अध्ययनों में जो अर्थ एकीकृत है, पिंडित है, उसमें से यथावस्थित पिण्डितार्थवचन के द्वारा इस अध्ययन का ग्रन्थन हुआ है, इसलिए इसका नाम गाथा है ।
१४१. प्रस्तुत सोलहवें अध्ययन में (पूर्व अध्ययनों में उक्त) अनगार के गुणों का पिण्डितार्थ से वर्णन किया गया है। इसलिए गाथा षोडशक नाम वाले इस अध्ययन का प्रतिपादन करते हैं।
दूसरा श्रुतस्कंध पहला अध्ययन : पुण्डरीक
१४२. महत् शब्द के छह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। १४३. अध्ययन के भी छह निक्षेप हैं—नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव ।
१४४. पुण्डरीक शब्द के आठ निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, गणना, संस्थान और भाव।
१४५. जो भव्य जीव पौण्डरीक (श्वेत कमल) में उत्पन्न होने वाला है, वह द्रव्य पुण्डरीक है। पुंडरीक का ज्ञाता भाव पौंडरीक है ।
१४६. प्रस्तुत तीन विकल्प द्रव्य पौण्डरीक के हैं-एकभविक, बद्धायुष्क तथा अभिमुखनामगोत्र ।
१४७. तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देवताओं में जो श्रेष्ठ होते हैं, वे पौंडरीक हैं, शेष कंडरीक
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१. अनिबद्धं च यल्लोके, गाथेति तत्पण्डितैः
प्रोक्तम्'—सूटी पृ १७५ २. एक भव के बाद पुंडरीक में उत्पन्न होने
वाला एकभविक । जिस जीव के पंडरीक का
आयुष्य बंध हो गया है, वह बद्धायुष्क तथा कुछ ही समय पश्चात् पुंडरीक में उत्पन्न होगा, वह अभिमुखनामगोत्र है।
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