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निर्मुक्तिपंचक
१०३.
समाधि आदि पांच प्रतिमाओं का १०१. अनंतानुबन्धी क्रोध आदि कषायों का नामोल्लेख।
उपशमन । आचारांग आदि आगमों में वर्णित १०२. अनंतानुबंधी क्रोध आदि चार कषायों की प्रतिमाओं की संख्या का निर्देश।
स्थिति एवं गति ।
मान, माया और लोभ की उपमाओं का श्रुत-समाधि प्रतिमा तथा चारित्र-समाधि
निर्देश। प्रतिमा का उल्लेख ।
१०४.
क्रोध, मान आदि कषायों के उदाहरणों का भिक्ष और उपासक प्रतिमा का सूत्र में
उल्लेख । वर्णन होने का निर्देश तथा विवेक प्रतिमा ।
१०४११. सद्गति हेतु नित्य उपशांत रहने का निर्देश । का उल्लेख।
१०५-१२. क्रोध में मरुक, मान में अचंकारियभट्टा, प्रतिसंलीन तथा एकाकीविहार प्रतिमा का
माया में साध्वी पोडरा तथा लोभ में मंगु उल्लेख ।
आचार्य का उदाहरण । ५१,५२. एकलविहार प्रतिमा ग्रहण करने वाले मुनि
११३.
कषायों के दुष्परिणाम जानकर उनसे की विशेषताएं।
निवृत्त होने का निर्देश । आठवी दशा : पर्युषणाकल्प
११४. चातुर्मास में प्रायश्चित्त वहन करने की ५३,५४ पर्युषणा शब्द के एकार्थक ।
सुविधा। ५५. स्थापना शब्द के निक्षेप ।
११५. प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों की पर्युषणा ५६,५७. भावस्थापना का स्वरूप ।
का निर्देश । ५८. चातुर्मास में प्रवेश और विहार के नियमों ११६-१९. वर्षा के समय भिक्षाचर्या करने और न
करने के कारणों का निर्देश । के कथन की प्रतिज्ञा ।
१२०. उत्तरकरण का स्वरूप । ५९-६३. चातुर्मास के अतिरिक्त विहार करने के
नवी दशा : मोहनीयस्थान नियम। आषाढ़ी पूर्णिमा को वर्षावास स्थापित करने
१२१. मोह शब्द के चार निक्षेपों का उल्लेख
तथा भावस्थान का अधिकार ।। का निर्देश तथा मिगसर कृष्णा दशमी तक
१२२. द्रव्य मोह के भेद-प्रभेद । वहां रहने का उल्लेख ।
१२३. आठौं कर्मों का पूर्वो में वर्णन का उल्लेख । ६४११. चातुर्मास योग्य क्षेत्र की विशेषताएं।
१२४-२६. कर्म शब्द के एकार्थक । ६५-६९.
चातुर्मास स्थापित करने के नियमों एवं १२७.१२८. महामोह कर्मबंध के कारणों का उल्लेख कारणों का निर्देश ।
तथा उनके वर्जन का उपदेश । ज्येष्ठावग्रह (छः मास तक एक स्थान पर दसवीं दशा : आजातिस्थान रहना) का उल्लेख ।
१२९. आजाति शब्द के निक्षेप । ७१-७५. वर्षावास के बाद विहार करने और न करने १३०. द्रव्य तथा भाव आजाति के भेद-प्रभेद । के कारणों का उल्लेख ।
१३१. जाति और आजाति का स्वरूप । ७६-७९. चातुर्मास काल में क्षेत्रावग्रह की मर्यादा। १३२. प्रत्याजाति का स्वरूप । ८०-८८. द्रव्य स्थापना के सात द्वार और उनका १३३ निदान से मोक्ष में बाधा। विवरण ।
१३४-१३६. मोक्ष-प्राप्ति के उपायों का उल्लेख । आचार की स्खलनाओं का प्रायश्चित्त तथा १३७. निदान शब्द के एकार्थक । कषाय के उपशमन का निर्देश।
१३८. द्रव्य बंध के भेद । ९०,९१. वर्षाकाल में हिंसा की सम्भावना से समिति १३९. क्षेत्र और कालबंध का स्वरूप । आदि में जागरूकता का निर्देश ।
१४०,१४१. भावबंध के प्रकार । ९२-१००. कलहशमन में दुरूतक, प्रद्योत एवं द्रमक १४२. अनिदानता की श्रेष्ठता का उल्लेख । की कथा का निर्देश ।
१४३. संसार-सागर को पार करने के उपाय । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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७०.