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नियुक्तिपंचक
२०७. संयम जीवों को अभय देने वाला तथा उनके लिए शीतघर--सुख का आवास है, इसलिए वह शीत है । असंयम उष्ण है। संयम तथा असंयम के आधार पर यह शीतोष्ण का अन्य पर्याय है।
२०८. यथार्थ में निर्वाण सुख ही सुख है। उसके एकार्थक शब्द हैं----सात, शीतीभूत, पद, अनाबाध । संसार में जो कुछ सुख है, वह शीत है और जो कुछ दुःख है, वह उष्ण है।
२०९. तीव्र कषायी, शोक से अभिभूत तथा उदीर्णवेदी--जिसकी काम-भावना विपाक में आ चुकी है---ये सब तीव्र ताप से जलते हैं । ये सब दाहक होने के कारण उष्ण हैं। तप इन सब से उष्णतर है। वह कषाय आदि को भी जला डालता है।
२१०. जो शीत और उष्ण स्पर्श को सहन करता है, जो सुख-दुःख को सहन करता है, जो परीषह, कषाय, वेद, शोक आदि को सहता है, वह श्रमण होता है । वह सदा तप, संयम तथा उपशम में पराक्रमशील होता है ।
२११. भिक्षु को शीत और उष्ण--सभी परीषह सहने चाहिए। उसे कभी काम का सेवन नहीं करना चाहिए । यह शीतोष्णीय अध्ययन की नियुक्ति है।
२१२. अमुनि----गृहस्थ सदा सुप्त होते हैं । मुनि सोते हुए भी सदा जागृत रहते हैं । सप्त और जागृत का कथन धर्म की अपेक्षा से है। जो निद्रा से सुप्त हैं, उनमें जागति की भजना होती
२१३. जैसे सुप्त, मत्त, मूच्छित, अस्वाधीन व्यक्ति अप्रतिकारात्मक बहुत सारे दु:खों को पाता है। वैसे ही जो व्यक्ति भावनिद्रा- प्रमाद, कषाय आदि में रहता है, वह भी तीव्रतर दु:खों को प्राप्त होता है।
२१४. जो विवेकी होता है, वह आग लगने पर पलायन करता हुआ तथा पंथ आदि के विवेक से युक्त होकर जैसे सुख का अनुभव करता है वैसे ही विवेकी श्रमण भी सुख का अनुभव करता है। यही उपदेश है।
चौथा अध्ययन : सम्यक्त्व
२१५,२१६. चौथे अध्ययन के चार उद्देशक हैं। उनके अधिकार इस प्रकार हैं--पहले उद्देशक में सम्यग्वाद, दूसरे में धर्मप्रवादूकों की परीक्षा, तीसरे में अनवद्य तप तथा बालतप से मुक्ति के निषेध का प्रतिपादन है। चौथे उद्देशक में संक्षेप में संयम का प्रतिपादन है। इसलिए मुमुक्ष को ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की परिपालना में यत्न करना चाहिए।
२१७. सम्यक्त्व के चार प्रकार के निक्षेप हैं---नाम सम्यक्त्व, स्थापना सम्यक्त्व, द्रव्य सम्यक्त्व तथा भाव सम्यक्त्व ।
२१८. द्रव्य सम्यक् ऐच्छानुलोमिक--इच्छानुकुल होता है। जिन-जिन पदार्थों के प्रति भाव की अनुकूलता होती है, उसे इच्छानुलोमिक द्रव्यसम्यक कहा जाता है। वह सात प्रकार का है--१. कृत २. संस्कृत-संस्कारित ३. संयुक्त ४. प्रयुक्त ५. त्यक्त ६. भिन्न और ७. छिन्न ।
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