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आचारांग निर्मुक्ति
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२५. ज्ञशरीर, भव्यशरीर तथा तद्व्यतिरिक्त अज्ञानियों का वस्तिनिरोध द्रव्य ब्रह्मचर्य है, यह संयम ही है। साधुओं का वस्तिसंयम भाव ब्रह्मचर्य है (इसके अठारह प्रकार हैं। ')
२९. चरण शब्द के छह निक्षेप होते हैं—नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव, क्षेत्र और काल । द्रव्य चरण के तीन प्रकार हैं-गति, आहार और गुण जिस क्षेत्र में गति, आहार आदि किया जाता है, वह क्षेत्रचरण है । जिस काल में गति, आहार आदि का आचरण या व्याख्या की जाती है, वह कालचरण है ।
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३०. भावचरण तीन प्रकार का है—१. गति भावचरण साधु का ईयसमितिपूर्वक चलना, २. भक्षण भावचरण - शुद्ध पिणापूर्वक आहार करना ३ गुण भावचरण गुण भावचरण दो प्रकार का है- - प्रशस्त तथा अप्रशस्त । आचारांग के नौ अध्ययन प्रशस्त गुण भावचरण हैं ।
३१-३४. आचार के नौ अध्ययन तथा उनका विषय इस प्रकार है१. वस्त्रपरिज्ञा जीवसंयम का निरूपण ।
२. लोकविषय कर्मबंध तथा कर्म मुक्ति की प्रक्रिया का अवबोध |
३. शीतोष्णीय सुख-दुःख की तितिक्षा का अवबोध ।
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४. सम्यक्त्व- - सम्यक्त्व की दृढ़ता का अवबोध ।
५. लोकसार - रत्नत्रयी से युक्त होने की प्रक्रिया
६. धुत - निस्संगता का अवबोध ।
७. महापरिज्ञा - मोह से उद्भुत परीषह और उपसर्गों को सहने की विधि । ८. विमोक्ष निर्माण अर्थात् अन्तक्रिया की आराधना ।
९. उपधानभूत-आठ अध्ययनों में प्रतिपादित अर्थों का महावीर द्वारा अनुपालन
ये नौ अध्ययन आचार कहलाते हैं तथा शेष (आधारचूला) अध्ययन आचाराय कहलाते
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३५. प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिक्षा के सात उद्देशक हैं- प्रथम उद्देशक में जीव के अस्तित्व का प्रतिपादन तथा शेष छह उद्देशकों में षड्जीवनिकाय की प्ररूपणा जीववध से कर्मबंध का निरूपण तथा विरति का प्रतिपादन है ।
३६. शस्त्र के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य शस्त्र हैं- खड्ग, अग्नि, विष, स्नेह, अम्लता, क्षार, लवण आदि । भावशस्त्र हैं- दुष्प्रयुक्त भाववाणी और काया की अविरति ।
-अन्तःकरण,
के ३७. परिज्ञा शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य परिज्ञा मुख्य दो प्रकार हैं-ज्ञपरिज्ञा और प्रत्याख्यान परिज्ञा । व्यतिरिक्त द्रव्य प्रत्याख्यान परिक्षा है-शरीर और उपकरण का परिज्ञान भावपरिक्षा के भी दो प्रकार है-शपरिक्षा और प्रत्याख्यान
परिज्ञा ।
१. आटी, पृ० ६ :
दिव्यात् कामरतिसुखात्,
त्रिविधं त्रिविधेन विरतिरिति नवकम् ।
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औदारिकादपि तथा, तद् ब्रह्माष्टादशविकल्पम् ॥
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