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आचारांग निर्मुक्ति
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१४४. कोई व्यक्ति प्रस्थ' अथवा कुडव' से सभी धान्य कणों को मापकर उनको अन्यत्र प्रक्षिप्त करे, वैसे ही यदि कोई साधारण वनस्पति के जीवों को प्रस्थ आदि से माप कर अन्यत्र प्रक्षिप्त करे तो अनन्त लोक भर जाएं ।
१४५. जो पर्याप्त बादर निगोद हैं, वे संवर्तित लोक प्रतर के असंख्येय भाग प्रदेश राशि जितने परिमाण वाले हैं शेष तीन अपर्याप्तक बादर निगोद, अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोद तथा पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद-ये प्रत्येक असंख्य लोकाकाशप्रदेश परिमाण जितने हैं । साधारण वनस्पति के जीव उनसे अनन्तगुना हैं ।
१४६, १४७. वनस्पति के फल, पत्र, पुष्प, मूल, कन्द आदि से निर्वर्तित भोजन, उपकरण-व्यजन, अगंला आदि शयन-मंचिका, पर्यक आदि आसन आसंदिका आदि, यान- पालकी आदि युग्यशकट आदि, आवरण फलक आदि प्रहरणलकड़ी आदि तथा अनेक प्रकार के शात्र, आतोय पटह, भेरी आदि, काष्ठकर्म प्रतिमा, स्तंभ, तोरणद्वार आदि, गंधान-प्रियंगु, देवदारु, ओशीर आदि वस्त्र - वल्कलमय कार्यासमय आदि मास्ययोगविविध पुष्पों की मालाएं, हमापन इंधन से जलाना, भस्मसात् करना, विज्ञापन सर्दी के अपनयन के लिए काठ आदि जलाकर अग्नि तपना, तैलविधान तिल, अतसी, सरसों आदि का तेल, उद्योत - वर्ती, तृण, चूड़ाकाष्ठ आदि से प्रकाश करना | वनस्पति के ये उपभोग-स्थान हैं । इन सभी में वनस्पति का उपयोग होता है ।
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१४८. मनुष्य इन कारणों से वनस्पति के बहुत जीवों की हिंसा करते हैं । वे अपने के सुख लिए दूसरे जीवों के दुःख की उदीरणा करते हैं ।
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१४९. कैबी, कुठारी, हंसिया, दांती, कुदाल, बच्छ, परशु सामान्यतः ये वनस्पति के शस्त्र हैं । इनके साथ हाथ, पैर, मुख तथा अग्नि ये भी शस्त्र हैं ।
१५०. वनस्पति के कुछ स्वकाय शस्त्र होते हैं, कुछ परकाय शस्त्र तथा कुछ उभय शस्त्र होते हैं । ये सारे द्रव्यशस्त्र हैं । भावशस्त्र है - असंयम ।
१५१. वनस्पति के शेष द्वार पृथ्वीकाय की भांति ही होते हैं। की नियुक्ति प्ररूपित है ।
१५२. जितने द्वार पृथ्वीकाय के लिए कहे गए हैं, उतने ही द्वार केवल पांच विषयों में है--- विधान परिमाण, उपभोग, शस्त्र तथा लक्षण ।
१५३. सजीव दो प्रकार के है- लब्धत्रस तथा गतिजस और वायुकाय प्रस्तुत में उनका (तेजो वायु का ) प्रसंग नहीं है।
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१. प्रस्थ - बत्तीस पल का एक प्राचीन
परिमाण ।
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इस प्रकार यह वनस्पतिकाय
१५४. गतिषस चार प्रकार के हैं-नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव । प्रकार हैं- पर्याप्त तथा अपर्याप्त ।
सकाय के लिए हैं । भेद
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लब्धिवस दो हैं - तेजस्काय
इन चारों के दो-दो
२. कुडव - बारह मुट्ठी धान का एक परिमाण ।
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