________________
विषयानुक्रम
-
३०.
m
*
४१. ४२.
*2
मंगलाचरण एवं आचारांग निर्यक्ति के कथन २९. की प्रतिज्ञा। आचार, अंग, श्रतस्कंध आदि के निक्षेपों की ३१,३२. प्रतिज्ञा ।
३३,३४. चरण और दिशा शब्द के निक्षेप का संकेत।। निक्षेप के उपयोग की विधि । भावाचार के निरूपण की प्रतिज्ञा।
३७. आचार शब्द के एकार्थक, प्रवर्तन आदि सात द्वारों के कथन की प्रतिज्ञा ।
४०. आचार शब्द के एकार्थक । आचारांग का रचनाकाल । आचारांग की विषयवस्तु ।
४३. आचारधर प्रथम गणिस्थान (गणिसंपदा)।
४४,४५. ११. आचारांग का बाह्य परिचय ।
४६. पहला अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा
४७,४८. १२. आचारांग (चूलिका) का आचारांग या शस्त्रपरिज्ञा में समवतरण ।
४९,५०. १३. शस्त्रपरिज्ञा तथा षट्जीवनिकाय का ५१-५८.
समवतरण । १४,१५ महावतों का समवतरण ।
६०. १६,१७ अंग आदि के सार के विषय में जिज्ञासा एवं ६१. समाधान।
६२. १८. ब्राह्मण आदि वर्णों की उत्पत्ति ।
मनुष्य जाति की एकता तथा वर्णों की ६३.
उत्पत्ति का इतिहास । २०. स्थापना ब्रह्म की संख्या का उल्लेख ।
सात वर्णों का उल्लेख । २२-२५.
अंबष्ठ आदि नौ वर्णान्तर जातियों का ६७.
वर्णन। २६,२७.
वर्णान्तरों के संयोग से होने वाली उत्पत्ति । २८. द्रव्य और भाव ब्रह्म का स्वरूप ।
चरण शब्द के निक्षेप । भावचरण के प्रकार । आचारांग के अध्ययनों के नाम । अध्ययनों की विषयवस्तु । शस्त्रपरिज्ञा के अधिकार । द्रव्यशस्त्र और भावशस्त्र का स्वरूप। द्रव्यपरिज्ञा और भावपरिज्ञा का स्वरूप । द्रव्यसंज्ञा और भावसंज्ञा के भेद । संज्ञाओं के सोलह भेद । दिशा शब्द के निक्षेप । द्रव्यदिशा का स्वरूप । दिशा तथा अनुदिशाओं का उत्पत्तिस्थल । दिशाओं के नाम। दिशाओं का निरूपण । दिशाओं का संस्थान (आकृति) । पूर्व-पश्चिम आदि चार ताप दिशाओं का वर्णन। मेरुपर्वत के साथ दिशाओं का सम्बन्ध । प्रज्ञापकदिशा के १८ भेद तथा नाम । प्रज्ञापकदिशाओं के संस्थान । भावदिशा के भेद। दिशाओं की कुल संख्या । प्रज्ञापकदिशा में ही जीव और पुदगल की गति। अस्तित्व-बोध के कुछ प्रश्न । अन्तरप्रज्ञा अथवा अतीन्द्रियज्ञानी द्वारा जातिस्मृति अथवा विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि । अस्तित्व-बोध के अन्य साधन । पृथ्वीकाय के निक्षेप, प्ररूपणा आदि नौ अधिकार । पृथ्वी शब्द के निक्षेप ।
५९.
१९.
२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org