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उत्तराध्ययन नियुक्ति
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जैसे पुनर्भव न करने वाले क्षीणसंसारी हो जायेंगे । हम इस अर्थ को जानते हैं, वैसे ही विमानवासी देव भी इस तत्व को समझते हैं। सब कुछ जानते हुए भी भगवान महावीर ने प्रथितकीति गौतम से पूछा- गौतम ! देवों के वचन ग्राह्य हैं अथवा जिनेश्वर देव के ? भगवान की वाणी सुनकर गौतम अपने मिथ्याचार का प्रतिक्रमण करने के लिए उत्कंठित हए । उनकी निश्रा में भगवान ने शिष्यों को अनुशिष्टि प्रदान की।
३००-३०२. लावण्यविहीन, शिथिल संधियों वाला, वृन्त से टूटकर नीचे गिरता हुआ आपद्ग्रस्त तथा कालप्राप्त वृक्ष का पांडुर पत्ता किसलय से बोला—'अब जैसे तुम हो, वैसे ही हम भी थे । अब जैसे हम हैं, वैसे ही तुम भी बनोगे ।' पांडुरपत्र और किसलय का ऐसा उल्लाप न हुआ है और न होगा। यह केवल भव्यजनों को प्रतिबोध देने के लिए उपमा दी गई है।
ग्यारहवां अध्ययन : बहुश्रुतपूजा
३०३. बहु, श्रुत और पूजा-इन तीनों शब्दों के चार-चार निक्षेप हैं-- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य बहुत्व में जीव और पुद्गल का बहुत्व विवेचित है।
___३०४. भावबहुत्व में अनन्त गमों से युक्त चौदह पूर्व बहुक हैं । ये क्षयोपशम भाव में बरतते हैं। क्षायिकभाव में वर्तमान केवलज्ञान भी भावबहक है क्योंकि उसके अनन्त पर्याय हैं।
३०५. द्रव्यश्रुत पुण्डज आदि हैं अथवा अक्षररूप में लिखित पुस्तक आदि द्रव्यश्रत हैं। भावश्रुत के दो भेद हैं-सम्यकश्रुत और मिथ्याश्रुत ।
३०६. भवसिद्धिक जीव तथा सम्यक् दृष्टि जीव जिस श्रुत को पढ़ते हैं, वह सम्यकुश्रुत होने के कारण भावश्रुत है । यह भावश्रुत आठ प्रकार के कर्मों का शोधक है, शुद्धिकारक है।
३०७. अभव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि जीव जो अध्ययन करते हैं, वह मिथ्याश्रुत है। मिथ्याश्रुत कर्मबंधन का हेतु है।
३०८. ईश्वर (धनपति), तलवर (राजा आदि), माडम्बिक (जलदुर्ग का अधिपति), शिव, इन्द्र, स्कन्ध, विष्णु आदि की जो पूजा की जाती है, वह द्रव्य पूजा होती है ।
३०९. तीर्थकर, केवली, सिद्ध, आचार्य और समग्र साधुओं की जो पूजा की जाती है, वह भाव पूजा है।
३१०. जो चतुर्दश पूर्वधर और निपुण सर्वाक्षरसन्निपाती हैं, उनकी पूजा भी भाव पूजा है। यहां इसी भावपूजा का अधिकार है।
१. देखें-परि०६, कथा सं० ५३ २. शांटी, पत्र ३४४ : सर्वाणि-समस्तानि
यान्यक्षराणि-अकारादीनि तेषां सन्निपातनं
तत् तदर्थाभिधायकतया सांगत्येन घटनाकरणं सर्वाक्षरसन्निपातः, स विद्यते अधिगम विषयतया येषां तेऽमी सर्वाक्षरसन्निपातिनः ।
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