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उत्तराध्ययननिर्युक्ति
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२८१२. श्रुत (अनुयोगद्वार सूत्र ) के अनुसार अध्ययन के नाम, स्थापना आदि चार भेदों का वर्णन करके अध्ययन, अक्षीण, आय और क्षपणा - इन चारों से विनयश्रुत की सम्बन्ध योजना करनी चाहिए |
२८ । ३. जिससे आत्मा में शुभ की अत्यधिक प्राप्ति होती है, अध्यात्म का आनयन तथा संबोध, संयम और मोक्ष का अत्यधिक लाभ होता है, वह अध्ययन है ।
२८।४. अव्यवच्छित्ति नय अर्थात् द्रव्यास्तिकनय के अनुसार दीयमान अध्यात्म अलोक की भांति अक्षीण है । इससे ज्ञान आदि की प्राप्ति होती है तथा पाप कर्मों का क्षय होता है ।
२९. विनय का पहले वर्णन किया जा चुका है। श्रुत शब्द के चार निक्षेप हैं । द्रव्यश्रुत है - श्रुत का ग्रहण और श्रुत का निह्नवन करना और भावश्रुत है— श्रुत में उपयुक्त तन्मय ।
३०. संयोग शब्द के छह निक्षेप हैं - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । द्रव्य संयोग दो प्रकार का होता है - संयुक्तकसंयोग तथा इतरेतरसंयोग ।
द्रुम
३१. संयुक्तकसंयोग सचित्त, अचित्त तथा मिश्र द्रव्यों का होता है । सचित्त द्रव्य जैसे— ' आदि । अचित्त द्रव्य जैसे - अणु आदि । मिश्र द्रव्य जैसे स्वर्ण आदि तथा कर्मसंतति उपलक्षित जीव ।
३२. सचित्तसंयुक्तद्रव्यसंयोग - द्रुम आदि मूल, कंद, स्कन्ध, त्वक्, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल तथा बीज से संयुक्त होता है ।
३३. एक रस, एक वर्ण, एक गंध तथा दो स्पर्श- यह परमाणु का लक्षण है । वे द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों में संयुक्त होते हैं । यह अचित्तसंयुक्तकसंयोग है ।
३४. मिश्रसंयुक्तद्रव्यसंयोग - जैसे स्वर्ण आदि धातुएं स्वभाव से ही संयोग-संयुक्त होती हैं। इसी प्रकार जीव कर्म-संतति से अनादि संयुक्तक है ।
३५. इतरेतरसंयोग का अर्थ है- परस्पर संयोग । परमाणुओं और प्रदेशों का इतरेतरसंयोग होता है । वह दो प्रकार का है- अभिप्रेत तथा अनभिप्रेत । अभिलाप है - वाचक शब्द का सम्बन्ध |
३६. परमाणुओं में दो प्रकार का इतरेतरसंयोग होता है— संस्थान से सम्बन्धित तथा स्कन्ध से सम्बन्धित | संस्थान विषयक संयोग के पांच प्रकार तथा स्कन्ध विषयक संयोग दो
प्रकार का है ।
३७. दो या अधिक परमाणु पुद्गल एकत्रित होकर स्कन्ध बनते हैं । उनका संस्थान अनित्थंस्थ होता है ।
३८. परिमण्डल, वृत्त, त्यस्र, चतुरस्र और आयत- इन पांचों संस्थानों में प्रथम परिमंडल को छोड़कर चारों संस्थान धन और प्रतर के द्वारा दो-दो भागों में बंटते हैं- ओजः प्रदेशघनवृत्त और युग्मप्रदेश घनवृत्त ओजःप्रदेश प्रतरवृत्त और युग्मप्रदेश प्रतरवृत्त | इसी प्रकार त्यस्र आदि के भी दो-दो भेद होते हैं ।
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