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निर्युक्ति पंचक
१६०. लोक में इनकी प्राप्ति दुर्लभ है- मनुष्यता, आर्यक्षेत्र, जाति, कुल, रूप, आरोग्य, आयुष्य, बुद्धि, धर्म-श्रवण, धर्म का अवधारण, श्रद्धा और संयम ।
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१६१. १. चुल्लक ( बारी-बारी से भोजन), २. पाशक, ३. धान्य, ४. द्यूत, ५. रत्न, ६. स्वप्न, ७. चक्र, ८ चर्म, ९. युग तथा १०. परमाणु - मनुजत्व की प्राप्ति के ये दश दृष्टान्त हैं । '
१६२. निम्नोक्त की प्राप्ति भी दुर्लभ है— इन्द्रियों की प्राप्ति, इन्द्रियों की निर्वर्तनापूर्ण रचना, पर्याप्ति की समग्रता, अंग- उपांगों की पूर्णता, देश का सौस्थ्य, सुभिक्ष अथवा विभव की प्राप्ति, आरोग्य, श्रद्धा, ग्राहक अर्थात् गुरु, उपयोग - स्वाध्याय आदि में उपयुक्तता, अर्थ-धर्म विषयक जिज्ञासा आदि ।
१६३,१६४. दुर्लभ मनुष्य जन्म को प्राप्त करके भी जीव कुछेक कारणों से हितकारी और संसार से पार लगाने वाली धर्मश्रुति को प्राप्त नहीं कर सकता। वे कारण ये हैं- आलस्य, मोह, अवज्ञा, अहंकार, क्रोध, प्रमाद, कृपणता, भय, शोक, अज्ञान, व्याक्षेप, कुतूहल तथा रमण - कुक्कुट आदि की क्रीडाएं आदि ।
१६५. मिथ्यादृष्टि जीव उपदिष्ट प्रवचन पर श्रद्धा नहीं करता । वह उपदिष्ट अथवा अनुपदिष्ट असद्भाव अर्थात् कुप्रवचन पर श्रद्धा कर लेता है ।
१६६. सम्यग्दृष्टि जीव उपदिष्ट प्रवचन पर तो श्रद्धा करता ही है, किन्तु वह अज्ञानवश अथवा गुरु-नियोग - गुरु के विश्वास पर असद्भाव- कुप्रवचन पर भी श्रद्धा कर लेता है ।
१६७. ० बहुरतवादी - क्रिया की निष्पत्ति में बहुत समय लगते हैं, ऐसा मानने वाले । जीवप्रदेशवादी अन्त्य प्रदेश ही जीव है अथवा अन्त्यप्रदेशजीववादी ।
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अव्यक्तवादी - सब कुछ अव्यक्त है, ऐसा मानने वाले ।
समुच्छेदवादी - एक क्षण के पश्चात् सर्वथा नाश मानने वाले ।
द्विक्रियवादी - एक समय में दो क्रियाओं को स्वीकार करने वाले ।
राशिकवादी तीन राशि जीव, अजीव, नोजीव मानने वाले ।
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अबद्धिकवादी -कर्म आत्मा से नहीं बंधते, ऐसा मानने वाले । मैं क्रमश: इनका निर्गमन अर्थात् उत्पत्ति का कथन करूंगा ।
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१६८,१६९. बहुरतवाद जमालि से उद्भूत हुआ । जीवप्रदेशवाद तिष्यगुप्त से, अव्यक्तवाद आचार्य आषाढ से, समुच्छेदवाद अश्वमित्र से, द्विक्रियवाद आचार्य गंग से, त्रैराशिकवाद षडुलूक (रोहगुप्त ) से तथा स्पृष्ट अबद्धिकवाद स्थविर गोष्ठामाहिल से उद्भूत हुआ ।
१७०. निह्नवों से सम्बंधित नगर क्रमश: इस प्रकार हैं - श्रावस्ती, ऋषभपुर, श्वेतविका, मिथिला, उल्लुकातीर, अंतरंजिका, दशपुर और रथवीरपुर ।
१. देखें परि० ६, कथा सं. २६-३५ ।
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