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दशकालिक नियुक्ति
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जह दुमगणा उ तह नगर जणवया पयण पायणसभावा । जह भमरा तह मुणिणो, नवरि' 'अदत्तं न भुंजंति५ ।। कुसुमे सभावपुष्फे, आहारंति भमरा जह तहेव" । भत्तं सभावसिद्धं, समणसुविहिता गवेसंति ॥ उवसंहारो भमरा, जह तह समणा वि अवधजीवि त्ति । दंत त्ति पुण पदम्मी, 'णातव्वं वक्कसेस मिणं' ।। 'जह एत्थ चेव इरियादिएसु सव्वम्मि दिक्खियपयारे । तस थावरभूय हियं, जयंति सभावि साहू || १२०।१. उवसंहारविसुद्धी, एस समत्ता उ निगमणं तेणं । वुच्चति साहुणोति य, जेणं ते महुयरसमाणा " ॥ १२०।२. तम्हा दयाइगुणसुट्ठिएहि भमरोव्व अवहवित्तीहि । साहूहि साहिउ त्ति, उक्किट्ठ मंगलं धम्मो || १२० । ३. निगमणसुद्धी तित्यंतरा वि धम्मत्थमुज्जया विहरे । भण्णइ कायाणं ते, जयणं न मुणंति न कुणंति" ॥ १२०।४. न य उग्गमाइसुद्धं भुजंती महुयरा वऽणुवरोही | नेव य तिगुत्तिगुत्ता, जह साहू निच्चकालं पि ॥
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असंतेहिं' भमरेहि, जदिसमा संजता खलु भवंति । एयं उवमं किच्चा, नृणं अस्संजता समणा || उमा खलु एसकता, पुव्वुत्ता देसलक्खणो वयणा' । अणितवित्तिनिमित्तं, अहिंसअणुपालद्वाए ॥
१. अस्संज ( अचू ), अस्संजएहिं (हा ), असंज
०
एहि (जिचू ) ।
२. एवं (हा, अ ) ।
३. तृतीयार्था चेह पंचमी (हाटी प ७३) ४. वर (जिचू ) |
५. अदिण्णं न गेव्हंति (अचू ) ।
६. सहावफुल्ले (हा, ब ) ।
७.
तहा उ ( हा) ।
दत्त (अब), दंति (अ) 1
८.
९. णायव्वों वक्कसेसोऽयं (हा ) ।
१०. जो एत्येवं (जिचू ) ।
११. १२० १-४ ये चार गाथाएं हाटी में निगा के क्रम में प्रकाशित हैं । किन्तु दोनों चूर्णियों में
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इन गाथाओं का कोई संकेत नहीं मिलता । इन गाथाओं में उपसंहार विशुद्धि और निगमनशुद्धि का उल्लेख है । ये गाथाएं व्याख्यात्मक हैं, अतः भाष्य की होनी चाहिए क्योंकि नियुक्तिकार प्रायः इतने विस्तार से किसी भी विषय की व्याख्या नहीं करते । तथा इन चार गाथाओं को नियुक्ति के क्रम में न रखने पर भी विषयवस्तु की क्रमबद्धता में कोई अंतर नहीं आता । (देखें परि १ गा. १३-१६)
१२. ० तरी ( रा ) ।
१३. करेंति ( रा ) ।
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