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________________ दशकालिक नियुक्ति ११५. ११६. ११७. जह दुमगणा उ तह नगर जणवया पयण पायणसभावा । जह भमरा तह मुणिणो, नवरि' 'अदत्तं न भुंजंति५ ।। कुसुमे सभावपुष्फे, आहारंति भमरा जह तहेव" । भत्तं सभावसिद्धं, समणसुविहिता गवेसंति ॥ उवसंहारो भमरा, जह तह समणा वि अवधजीवि त्ति । दंत त्ति पुण पदम्मी, 'णातव्वं वक्कसेस मिणं' ।। 'जह एत्थ चेव इरियादिएसु सव्वम्मि दिक्खियपयारे । तस थावरभूय हियं, जयंति सभावि साहू || १२०।१. उवसंहारविसुद्धी, एस समत्ता उ निगमणं तेणं । वुच्चति साहुणोति य, जेणं ते महुयरसमाणा " ॥ १२०।२. तम्हा दयाइगुणसुट्ठिएहि भमरोव्व अवहवित्तीहि । साहूहि साहिउ त्ति, उक्किट्ठ मंगलं धम्मो || १२० । ३. निगमणसुद्धी तित्यंतरा वि धम्मत्थमुज्जया विहरे । भण्णइ कायाणं ते, जयणं न मुणंति न कुणंति" ॥ १२०।४. न य उग्गमाइसुद्धं भुजंती महुयरा वऽणुवरोही | नेव य तिगुत्तिगुत्ता, जह साहू निच्चकालं पि ॥ ११८. ११९. १२०. असंतेहिं' भमरेहि, जदिसमा संजता खलु भवंति । एयं उवमं किच्चा, नृणं अस्संजता समणा || उमा खलु एसकता, पुव्वुत्ता देसलक्खणो वयणा' । अणितवित्तिनिमित्तं, अहिंसअणुपालद्वाए ॥ १. अस्संज ( अचू ), अस्संजएहिं (हा ), असंज ० एहि (जिचू ) । २. एवं (हा, अ ) । ३. तृतीयार्था चेह पंचमी (हाटी प ७३) ४. वर (जिचू ) | ५. अदिण्णं न गेव्हंति (अचू ) । ६. सहावफुल्ले (हा, ब ) । ७. तहा उ ( हा) । दत्त (अब), दंति (अ) 1 ८. ९. णायव्वों वक्कसेसोऽयं (हा ) । १०. जो एत्येवं (जिचू ) । ११. १२० १-४ ये चार गाथाएं हाटी में निगा के क्रम में प्रकाशित हैं । किन्तु दोनों चूर्णियों में Jain Education International ३३ इन गाथाओं का कोई संकेत नहीं मिलता । इन गाथाओं में उपसंहार विशुद्धि और निगमनशुद्धि का उल्लेख है । ये गाथाएं व्याख्यात्मक हैं, अतः भाष्य की होनी चाहिए क्योंकि नियुक्तिकार प्रायः इतने विस्तार से किसी भी विषय की व्याख्या नहीं करते । तथा इन चार गाथाओं को नियुक्ति के क्रम में न रखने पर भी विषयवस्तु की क्रमबद्धता में कोई अंतर नहीं आता । (देखें परि १ गा. १३-१६) १२. ० तरी ( रा ) । १३. करेंति ( रा ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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