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________________ नियुक्तिपंचक १०५. नवकोडीपरिसुद्धं, उग्गम-उप्पायणेसणासुद्धं । छट्ठाणरक्खणट्ठा, अहिंस-अणपालणट्ठाए' ।। १०६. दिळेंतसुद्धि एसा, उवसंहारो य सुत्तनिट्टिो । संती विज्जती त्ति य, संति सिद्धिं च साहति ।। १०७. धारेइ तं तु दव्वं, तं दव्वविहंगमं वियाणाहि । भावे विहंगमो पुण, गुणसण्णासिद्धिओ दुविहो । १०८. विहमागासं' भण्णइ, गुणसिद्धी तप्पइडिओ लोगो। तेण उ विहंगमो सो, भावत्थो वा गई दुविहा ।। १०९. भावगई कम्मगई, भावगई पप्प अत्थिकाया उ । सव्वे विहंगमा खलु, कम्मगईए इमे भेया ।। ११०. विहगगई चलणगई, कम्मगई उ समासओ दुविहा । तदुदयवेयगजीवा, विहंगमा पप्प विहगगई ।। १११. 'चलणं कम्मगई खलु, पडुच्च संसारिणो भवे जीवा । पोग्गलदव्वाइं वा, विहंगमा एस गुणसिद्धी ।। ११२. सण्णासिद्धि पप्पा, विहंगमा होति पक्खिणो सव्वे । इहइं पुण अहिगारो, विहायगमणेहि' भमरेहिं ।। ११३. दाणेति दत्त गिण्हण, भत्ते भज-सेव फासुगेण्हणया । एसणतिगम्मि निरया, उवसंहारस्स सुद्धि इमा ।। ११४. अवि भमरमधुकरिगणा", अविदिण्णं आवियंति कुसुमरसं । समणा पुण भगवंतो, नादिण्णं भोत्तुमिच्छंति ।। १. टीकाकार हरिभद्र ने इस गाथा को कारेणाभ्यधायि (हाटी प ६९) का उल्लेख 'भिन्न कर्तृ की' माना है। दोनों चूणियों में किया है। इन उल्लेखों से यह तो स्पष्ट है यह नियुक्ति गाथा के क्रम में व्याख्यात है। कि हरिभद्र के समक्ष ये गाथाएं नियुक्तिगाथा यह गाथा मूलाचार में भी है। हमने इसे के रूप में प्रसिद्ध थीं। चूणि में इन गाथाओं निगा के रूप में स्वीकृत किया है। का उल्लेख न होने का कोई स्पष्ट कारण २. १०६-१३ की गाथाओं का दोनों चूणियों में प्रतीत नहीं होता। कोई उल्लेख नहीं है। किन्तु टीकाकार हरि- ३. विजहाति विमुञ्चति जीवपुद्गलानिति विहं भद्र ने नियुक्ति गाथा के रूप में इनकी व्याख्या की है। गा. १०६ की व्याख्या में ४. चलनं कम्मगइं (ब,हा)। टीकाकार कहते हैं--चोक्तं नियुक्तिकारेण ५. विहासग ० (हा)। संति विज्जति त्ति य (हाटी प६८) तथा ६. दाणिति (अ), दाणे त्ति (ब)। १०७वीं गाथा के प्रारंभ में भी--अवयवा) ७. ० महुयरगणा (हा, रा), सूत्रस्पशिकनियुक्त्या प्रतिपादयति (हाटी प ८. आदियंति (जिचू)। ६८) १०८वीं गाथा के बारे में भी नियुक्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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