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नियुक्तिपंचक
१२१. कायं वायं च मणं च, इंदियाइं च पंच दमयंति' ।
धारेंति बंभचेरं, संजमयंती कसाए य ।। १२२. जं च तवे उज्जुत्ता, तेणेसिं साधुलक्खण' पुण्णं ।
तो साधुणो त्ति भण्णंति, साहवो निगमणं चेयं ।। १२३. ते उ 'पतिण्ण-विभत्ती', हेउ-विभत्ती विवक्खपडिसेहो ।
दिलैंतो आसंका, तप्पडिसेहो निगमणं च ॥ १२३३१. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ ति, पइण्णा अत्तवयणनिद्देसो ।
सो य इहेव जिणमए, नन्नत्थ पइण्णपविभत्ती ।। १२३१२. सुरपूइओ त्ति हेऊ, धम्मद्राणे ठिया उ जं परमे।
हेउविभत्ती निरुवहि, जियाण अवहेण य जियंति ।। १२३।३. जिणवयणपदुढे वि हु, ससुराईए अधम्मरुइणो वि ।
मंगलबुद्धीइ जणो, पणमइ आई दुयविपक्खो ।। १२३।४. बितियदुयस्स विवक्खो, सुरेहिं पुज्जति 'जण्णजाई वि'"।
बुद्धाई वि सुरनया, वुच्चंते१२ णायपडिवक्खो ।। १२३॥५. एवं तु अवयवाणं, चउण्ह पडिवक्खु पंचमोऽवयवो।
एत्तो छट्ठोऽवयवो, विवक्ख पडिसेह तं" वोच्छं ।। १२३।६. सायं समत्त पुमं, हास-रई आउनामगोयसुहं ।
धम्मफलं आइदुगे, विवक्खपडिसेह मो१४ एसो।।
१. दमइंति (हा)।
कहते हैं कि- 'व्यासार्थं तु प्रत्यवयवं वक्ष्यति २. व्यंति (रा, हा)।
ग्रंथकार एव' इस वाक्य से यह स्पष्ट होता है ३. साहू ० (अ, ब, हा)।
कि भाष्यकार ने गा. १२३ की व्याख्या में ४. भन्नइ (अ, ब)।
इन गाथाओं की रचना की हो। ये गाथाएं ५. साहुणो (रा)।
निगा की नहीं होनी चाहिए क्योंकि नियुक्ति६. पइण्णविसुद्धी (जिचू)।
कार किसी भी विषय की इतनी विस्तृत ७. ध्वं (ब)।
व्याख्या नहीं करते। (देखें परि. १ गा. ८. पाठांतरं वा साध्यवचननिर्देश इति (हाटी १७-२७)।
१०. बीय ० (रा)। ९. १३३/१-११ ये ११ गाथाएं टीका में निगा ११. जहण्णजाईहि (रा)।
के क्रम में व्याख्यात हैं किन्तु चूर्णि में इनका १२. वृत्तंते (अ)। कोई संकेत नहीं मिलता। गा. १२३वीं गाथा १३. गं (रा)। की व्याख्या ही इन ११ गाथाओं में की गई १४. मो इति निपातो वाक्यालंकारार्थे (हाटी प७८) है। १२३११ बी गाथा के प्रारंभ में टीकाकार
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