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________________ दशवेकालिक नियुक्ति १२३।७. अजिइंदिय सोवहिणो, वधगा जइ ते वि नाम पुज्जति । अग्गी वि होज्ज सीओ, हेउविभत्तीण पडिसेहो || १२३।८. बुद्धाई उवयारे, पूयाठाणं जिणा उ सब्भावं । दिट्ठत डिस्सेहो, छट्टो एसो अवयवो १२३।९. अरहंत' मग्गगामी, दिट्ठतो साहुणो विसमचित्ता । पागरएसु गिहीसुं, एसंते अवमाणा १२४. १२३।१०. तत्थ भवे आसंका, उद्दिस्स जई वि कोरए पागो । तेण र विसमं नायं, वासतणा तस्स पडसे || १२३।११. तम्हा उ सुरनराणं, पुज्जत्ता मंगलं सया धम्मो । दसमो एस अत्रयवो, पइण्णहेऊ पुणो वयणं ॥ 'दुमपुप्पियनिज्जत्ती, समासओ वण्णिया विभासाए । जिण - चउदसपूवी', वित्थरेण कहयंति से अत्थं । णाम गियिव्वे अगिहियव्वम्मि चेव अत्थमि। जइयव्वमेव इयर जो, उवदेसो सो नयो नाम ।। सव्वेसि पि नयाणं, बहुविहवत्तव्वयं निसामेत्ता । तं सव्वनयविसुद्धं, जं चरणगुणट्टिओ साहू ।। दुमपुष्पियनिज्जुत्ती सम्मत्ता १२५. १२६. १. अरि ० ( अ ) । २. दुमपुफिया ए विभासा य (अचू, ब ) । ३. चोट्स ० ( अ ) | ४. अट्ठ (अचू, हा) । इस गाथा से स्पष्ट है कि यह गाथा भद्रबाहु प्रथम के बाद जोड़ी गई है । क्योंकि यदि वे स्वयं लिखते तो 'जिण उद्दeyoवी वित्थरेण कहयंति से अत्थं, ऐसी बात नही कहते। यह गाथा हाटी में नहीं मिलती। Jain Education International णिज्जुत्तिसमासो वणिओ उ ।। उ ॥ For Private & Personal Use Only ३५ ५. इति ( अ, ब ) । ६,७. देखें अनुद्वा ७१५ ५, ६ ये दोनों गाथाएं प्रायः सभी अध्ययनों के अंत में संकेत रूप में मिलती हैं । लेकिन सभी स्थलों पर इनको नियुक्ति गाथा के क्रम में नहीं जोड़ा है। जहां चूर्णि - टीका या आदर्शो में पूरी गाथाएं दी हुई हैं वहीं हमने इनको नियुक्ति गाथा संख्या के क्रम में जोड़ा है । www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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