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दशवकालिक नियुक्ति
२४. दशवकालिक आगम का यह संक्षिप्त वाच्यार्थ है। अब एक-एक अध्ययन का क्रम से वर्णन करूंगा।
२५. प्रथम अध्ययन का नाम 'द्रुमपुष्पिका' है। इसके चार अनुयोगद्वार हैं। उपक्रम आदि का वर्णन करने के पश्चात् अब धर्म-प्रशंसा का अधिकार है।
२१. (निक्षेप तीन प्रकार का है-ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न और सूत्रालापकनिष्पन्न) ओघ निष्पन्न का अर्थ है-सामान्य श्रुत । उसके चार प्रकार हैं-अध्ययन, अक्षीण, आय और क्षपणा ।
२५।२. श्रुत (अनुयोगद्वार सूत्र) के अनुसार अध्ययन के नाम, स्थापना आदि चार भेदों का वर्णन कर अध्ययन, अक्षीण, आय और क्षपणा-इन चारों से द्रुमपुष्पिका की सम्बन्ध-योजना करनी चाहिए।
२६. अध्ययन का अर्थ है-अध्यात्म का आनयन । उपचित (संचित) कर्मों का अपचय और नए कर्मों का अनुपचय, यह सारा अध्यात्म का आनयन है । यही अध्ययन है।
२७. जिससे अर्थ-बोध होता है, वह अधिगम-अध्ययन है अथवा जिससे अर्थबोध में अधिक गति होती है, वह अध्ययन है। इससे मुनि संयम के प्रति तीव्र प्रयत्न करता है, इसलिए (भव्य जन) अध्ययन की इच्छा करते हैं।
२८. जैसे दीपक स्वयं प्रज्वलित होता हुआ अन्य सैकड़ों दीपकों को प्रज्वलित करता है, (वैसे ही) दीपक के समान आचार्य स्वयं प्रकाशित होते हैं और दूसरों को भी प्रकाशित करते हैं।
२९. आय का अर्थ है लाभ। जिससे ज्ञान, दर्शन और चारित्र की प्राप्ति होती है वह भाव आय है।
३०. पूर्व संचित आठ प्रकार की कर्मरजों को मन, वचन और काया की प्रवृत्ति से क्षीण करना क्षपणा है । इस भाव अध्ययन को क्रमशः अध्ययन, अक्षीण, आय और क्षपणा के साथ योजित करना चाहिए।
___३१. 'द्रुम' और 'पुष्प' शब्द के चार-चार निक्षेप हैं-नाम द्रुम, स्थापना द्रुम, द्रव्य द्रुम और भाव द्रुम तथा नाम पुष्प, स्थापना पुष्प, द्रव्य पुष्प और भाव पुष्प ।
३२. द्रुम, पादप, वृक्ष, अगम, विटपी, तरु, कुह महीरुह, वच्छ, रोपक और रुजक-ये द्रुम के पर्यायवाची शब्द हैं।।
३३. पुष्प, कुसुम, फुल्ल, प्रसव, सुमन और सूक्ष्म (सूक्ष्मकायिक)-ये पुष्प के एकार्थक शब्द
३४. द्रुमपुष्पिका, आहार-एषणा, गोचर, त्वक्, उञ्छ, मेष, जोंक, सर्प, व्रण, अक्ष, इषु, लाख का गोलक, पुत्र (पुत्र मांस) और उदक-गे मब प्रथम अध्ययन के एकार्थक हैं। (अन्य मान्यता
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