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नियुक्तिपंचक अधिक सूक्ष्म होता है क्षेत्र क्योंकि अंगुल श्रेणिमात्र क्षेत्र के प्रदेशों के अपहार में असंख्येय उत्सर्पिणियां और अवसर्पिणियां बीत जाती हैं।
उस समय ऐसे द्रव्यों का संयोग किया जाता था, जिससे दीए की बाती बिना तेल के ही केवल पानी से जलती थी। काश्मीर आदि देशों में कांजी के पानी से दीया जलाया जाता था। चक्रवर्ती का गर्भगृह उष्णकाल में उष्ण तथा शीतकाल में शीत रहता था।३ नालिका आदि के द्वारा समय का सही ज्ञान कर लिया जाता था। जमदग्निजटा, तमालपत्र आदि गंध द्रव्यों को मल्लिका—चमेली पुष्प से वासित कर दिया जाता तो वह गंधद्रव्य करोड़ मूल्य वाला हो जाता था। सूत्रकृतांगनियुक्ति में पद्म का वर्णन आश्चर्य पैदा करने वाला है। विज्ञान के द्वारा यह खोज का विषय है कि ऐसा कमल कहां होता है और उसे कैसे पाया जा सकता है? नियुक्तिकार ने सोने के आठ गुणों का संकेत किया है।
१. विषघाती विष का नाश करने वाला। २. रसायण-...यौवन बनाए रखने में समर्थ । ३. मंगलार्थ -मांगलिक कार्यो में प्रयुक्त। ४. प्रविनीत यथेष्ट आभूषणों में परिवर्तित होने वाला। ५. प्रदक्षिणावर्त --तपने पर दीप्त होने वाला। ६. गुरुसार वाला। ७. अदाह्म-अग्नि में नहीं जलने वाला। ८. अकुथनीय—कभी खराब न होने वाला।
नियुक्तिकार ने सोने की कष, छेद, ताप, ताड़ना आदि चार कसौटियों का भी उल्लेख किया है। सोने को चमकाने के लिए सौराष्ट्रिक मिट्टी का प्रयोग किया जाता था। कृत्रिम सोना तैयार किया जाता था। वह शुद्ध सोने जैसा लगता पर कसौटियों पर खरा नहीं उतरता था।१० स्वास्थ्य-विज्ञान एवं आयुर्वेद
नियुक्तिकार आयुर्वेद के भी विज्ञाता थे। प्रसंगवश उन्होंने तत्कालीन आयुर्वेद एवं चिकित्सा के अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संकेत दिया है। रोगी के फोड़े को काटकर उसकी सिलाई की जाती थी। गलयंत्र के द्वारा अपथ्य के प्रति कुत्सा पैदा की जाती थी, जिससे अजीर्ण-दोष की निवृत्ति हो जाती थी।११
जेठ और आषाढ़मास की वायु का शरीर में निरोध होने से व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता था ।१२ आज की भाषा में इसे लू लगना कहा जा सकता है। सांप, बिच्छू आदि काटने पर मंत्रों का प्रयोग किया जाता था।९३ दो रजनी पिंडदारु और हल्दी, माहेन्द्र फल, त्रिकटुक के तीन अंग-सूंठ,
१. आनि ८९ । २. सूचू १ पृ. १६३; कस्मीरादिषु च काज्जिकेनापि दीपको दीप्यते । ३. सूचू १ पृ. १६३; चक्कवट्टिस्स गब्भगिहं सीते उण्ह उण्हे सीतं । ४. दशनि ५८। ५. उनि १४६ । ६. सूनि १६२-६५। ॐ दशनि ३२६ ।
८. दशनि ३२७ । ९. दशजिचू पृ. १७९ । १०. दशहाटी प. २६३ । ११. दशनि३४१। १२. उनि १३०. १३१ । १३. दशहाटी प. २३६ ।
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