________________
साधना का अर्थ
११
शक्ति तिरोहित होने लगती है। यह आविर्भाव और तिरोभाव की प्रक्रिया
___एक दिन साधु और धोबी लड़ पड़े । साधु तपस्वी था, कृश था। उसने सोचा–देवता सेवा में रहता है । कोई चिन्ता नहीं है । धोबी हट्टा-कट्टा था । साधु को उसने गिरा डाला । साधु उठ नहीं सका। धोबी चला गया। कुछ देर बाद साधु उठकर अपने स्थान पर आया। शान्त हुआ, स्वस्थ हुआ । इतने में देवता सामने उपस्थित हो गया । साधु ने पूछा
"देवानुप्रिय ! कहां गए थे?" "महाराज ! मैं कहीं नहीं गया था।" "अरे ! तुमने देखा नहीं, एक आदमी ने मुझे कितना पीटा ?" "अभी-अभी एक आदमी मुझे पीट गया।" "नहीं, महाराज ! आपको कोई नहीं पीट सकता !" "तो लगता है तुम कहीं चले गए थे।" "गया तो नहीं, एक घटना देख रहा था ।" "कैसी घटना?" "दो चाण्डाल लड़ रहे थे । मैं देख रहा था, मजा ले रहा था ।"
तो जिस समय साधु लड़ रहा था, वह साधु नहीं था, चाण्डाल था । आप स्थूल भाषा में उसे साधु कह सकते हैं। वह साधु नहीं था। हम शुद्ध दृष्टि में जाकर देखें । हम अशुद्ध नय की दृष्टि से स्थूल घटना को देखते हैं और उसी को कहते हैं हम साधु के वेश को देखते हैं और उसे साधु कह देते हैं । शुद्ध नय ऐसा नहीं कहता। वह कहता है-जब वह लड़ रहा है तब चाण्डाल है, साधु नहीं । उसका जो भावात्मक धर्म था साधुता, वह तिरोहित हो गया। जो उसमें अभावात्मक धर्म था, अभावात्मक चेतना थी, वह प्रकट हो गयी । साधु, साधु नहीं रहा, वह चाण्डाल बन गया।
एक अध्यापक दूकान पर बैठा है । वह ग्राहकों को माल दे रहा है। आप क्या कहेंगे उसे ? आप जाकर कहेंगे-अध्यापक महोदय ! नमस्कार ! किन्तु शुद्ध नय ऐसा नहीं कहेगा । अध्यापक तब होगा जब वह पढ़ा रहा हो । अभी वह माल बेच रहा है, दूकानदार है, अध्यापक नहीं। ____एक भिक्षु बैठा है । वह मौन है । शुद्ध नय कहेगा--अभी मौन बैठा हैं तो वह मुनि हो सकता है, भिक्षु नहीं । वह भिक्षु तब होगा जब वह भिक्षा कर रहा हो।