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पू. श्री की असीम कृपा दृष्टि ने हम सभी को सत्यमार्ग पर चलना सिखाया। उनके बताये हुए मार्ग पर चलते हुए स्व-पर कल्याण में निरन्तर लगे रहें, इसी भावना के साथ पू. श्री के पावन चरणों में श्रद्धा सुमन समर्पित करती हुई आशा करती हूँ कि वे जहाँ भी हो वहां से हमारा मार्गदर्शन करते रहे ताकि हम भी संयम, तप, चारित्र में रुचि बढ़ाकर उनके बताये मार्ग पर बढ़ती रहें। इसी कामना के साथ उनके चरणों में कोटि कोटि वंदना।
जन जीवन का आधार
• साध्वी श्री अक्षय ज्योति म., मद्रास
जग में जीवन श्रेष्ठ वही, जो फूलों सा मुस्काता है।
__ अपने गुण सौरभ से जग के,
कण कण को महकाता है। दही का मंथन करने से नवनीत प्राप्त होता हैं और जीवन का मंथन करने से अनुभव का अमृत मिलता है। नवनीत दही का सार है, तो अनुभव जीवन का सार है। महापुरुषों का जीवन निराला होता है, उस जीवन में अनेक प्रकार के मीठे और कड़वे अनुभव होते हैं। और उन कड़वे मीठे अनुभवों को महापुरुष सहज रूप से ग्रहण करते है। न मीठे अनुभवों के प्रति उनके मन में अनुराग होता है और न कड़वे के प्रति द्वेष ही होता है। वह तो समभावी साधक होता है। ऐसे ही साधकों में हमारे गुरूवर्या श्री कानकुंवर जी म. सा. और श्री चम्पाकुवंर जी म.सा. थी। उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया। उनके मन में सदैव परोपकार की भावना होती थी। उन्होंने मेरे जीवन को नया मोड़ दिया, डूबती हुई को बचाया। मैं आज जो कुछ भी हूँ वह उनकी कृपा का ही परिणाम है। मैं एक अनजान थी। धर्म के बारे में, धर्म के तत्वों के बारे में कुछ नहीं जानती थी और अपना जीवन अंधकार में व्यतीत कर रही थी। पू. महासती जी दाद गुरुवर्या ने मेरे जीवन का विकास किया, डूबने से बचाया। अंधकार में जीवन व्यतीत करने वाली को प्रकाश में जीवन व्यतीत करने की कला का ज्ञान प्रदान किया।
जिस समय मैं गुरूवर्या श्री के सम्पर्क में/सान्निध्य में आई उस समय मैं कुछ भी नहीं जानती थी। केवल एक बार उनके दर्शन किये। उन्होंने मुझे देखा, मेरा परिचय जाना। उन्होंने कहा था-आरती! (मेरा सांसारिक नाम) तुझे धर्म के बारे में तो कुछ भी ज्ञात नहीं हैं। तू जैन है और कुछ नहीं जानती।" इतना कहते हुए उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मुझे देखा था। इस अपनत्व से मैं उनके प्रति समर्पित हो गई। उनके पास से जाने की इच्छा ही नही हो रही थी। मेरे हृदय में ऐसी भावना उठी कि बस उनके समीप बैठी ही रहूं। मैंने पूछा “म.सा. क्या मैं आपके पास रह सकती हूँ? मैं आपके पास रहकर कुछ सीखना चाहती हूँ।"
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