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करना ( उद्योग० १६ । ३१-३४ ) । अगस्त्यजीसे नहुषके पतनका वृत्तान्त पूछना (उद्योग० १७ । ६)। इनका महर्षि अङ्गिराको वरदान (उद्योग० १८।७)। स्वर्गमें आकर इन्द्रपदपर प्रतिष्ठित होना ( उद्योग० १८।९)। मातलिके जामाता नागकुमार सुमुखको भगवान् विष्णुकी आज्ञासे दीर्घायु बनाना ( उद्योग १०४ । २८)। शिवद्वारा दिव्यकवचकी प्राप्ति, उससे सुरक्षित होकर इनका वृत्रको मारना तथा मन्त्र और विधिसहित वह कवच अङ्गिराको देना (द्रोण० ९४ ।। ६४-६६)। इन्द्र के लिये विश्वकर्माद्वारा विजय नामक धनुषका निर्माण तथा इन्द्रका उसे परशुरामको समर्पण करना ( कर्ण० ३३ । ४२-४४ )। त्रिपुरोंसे भयभीत होकर इनका देवताओंसहित ब्रह्माके पास जाना (कर्ण ३३ । ३७-४० )। कर्ण और अर्जुनके द्वैरथ-युद्ध में अर्जुनकी विजयके लिये इनका सूर्यसे विवाद ( कर्ण ८७ । ५७-५९)। इन्द्र के अनुरोधसे ब्रह्मा और शिवजीके द्वारा अर्जुनकी विजय घोषणा ( कर्ण० ८७ । ६४७३ ) । नमुचिके वधसे संकटमें पड़े हुए इन्द्रका अरुणासङ्गममें स्नान करनेसे उद्धार (शल्य० ४३ । ४३-४५)। इनके द्वारा स्कन्दको उत्क्रोश' और 'पञ्चक' नामक दो अनुचर-प्रदान (शल्य. ४५। ३५-३६)। स्कन्दको शक्ति नामक अम्र और घण्टाका दान (शल्य. ४६ । ४४-४५)। इनके द्वारा भरद्वाजकन्या अतावतीकी परीक्षा और उसे वर-प्रदान ( शल्य.४८।२-.५८)। इन्द्रतीर्थ में सौ यज्ञ करनेसे इनका शतक्रतु' नाम होना (शल्य०४९ । २-४)। कुरुक्षेत्रकी भूमि जोतते हुए राजर्षि कुरुके साथ इनका संवाद (शल्य ५३ । ५१५)। पक्षीरूपसे आकर इनका तपस्वियोंको गृहस्थ-धर्मका उपदेश (शान्ति.११।11-२६)। इनका रन्तिदेवको वरदान ( शान्ति. २९ । १२०-१२१)। बृहस्पतिजीसे समस्त प्राणियों के लिये प्रिय होने का उपाय पूछना (शान्ति० ८४ । २ )। अम्बरीषके पूछनेपर इनका उनके सेनापति सुदेवकी सद्गतिका कारण बनाना ( शान्ति. ९८ । ११ के बाद दाक्षि० पाठ से १३ तक )। अम्बरीषके पूछनेपर, इन्द्रका उनसे रणयज्ञका वर्णन करना (शान्ति० ९८ । १५-५०)। बृहस्पतिजीसे विजय प्राप्तिके उपाय पूछना (शान्ति. १०३ । ४-५)। प्रह्लादके पास शीलकी शिक्षाके लिये शिष्यरूपसे निवास और वररूपसे उसकी प्राप्ति ( शान्ति. १२४ । २८-६२) । विरूपाक्षको राजधर्माके शापकी कथा सुनाना (शान्ति० १७३ । ८-१०)। राजधर्माके कहनेसे गौतमको जीवन-दान देना ( शान्ति. १७३। १२-१३ )। आत्महत्याके लिये उद्यत काश्यपको सियारके
रूपमें प्रकट होकर समझाना ( शान्ति० १८० अ० में)। प्रह्लादके साथ इनका ज्ञानविषयक संवाद (शान्ति० २२२ । ९-३७)। ब्रह्मासे बलिका पता पूछना (शान्ति० २२३ । ३-७)। बलिपर आक्षेप (शान्ति० २२३ । १४.-२५; शान्ति० २२४।२--४)। लक्ष्मीके साथ संवाद और उनकी सुप्रतिष्ठा (शान्ति. २२५ । ५-२९ ) । बलिको जीवित चले जानेकी आज्ञा देना (शान्ति २२५ । ३३-३६) । नमुचिसे उसके श्रीहीन होनेपर भी दुःखित न होनेका कारण पूछना ( शान्ति. २२६ । ३)। राजलक्ष्मीसे भ्रष्ट होनेपर भी बलिसे शोक न करनेका कारण पूछना (शान्ति० २२७ । १४-१९ ) । बलिका उत्तर सुनकर उसकी बातोंका समर्थन और उसे अभय-दान (शान्ति० २२७ । ८९-५५६ ) नारदजीके साथ लक्ष्मीका दर्शन ( शान्ति. २२८ । १६-१८ )। असुरोंको त्यागकर आनेके विषय में लक्ष्मीसे प्रश्न ( शान्ति. २२८ । २८ ) । लक्ष्मीको साथ लेकर अमरावतीमें प्रवेश (शान्ति. २२८ । ८९)। इनके द्वारा अपनी पत्नी अहल्याकी धर्षणाकी गौतमद्वारा चर्चा (शान्ति० २६६ । ४७-५१) । इनका वृत्रासुरके साथ युद्ध और मोहित होना ( शान्ति. २८१ । १३२१)। देवताओं और ऋषियोंके प्रोत्साहनसे इनके द्वारा वृत्रासुरका वध (शान्ति. २८२ । ९)। ब्रह्महत्याके भयसे भागना और कमलनालमें छिपना (शान्ति. २८२ । ११-१८ ) । ब्रह्माद्वारा इन्हें ब्रह्महत्यासे छुटकारा प्राप्त होना ( शान्ति. २८२ । ५६ )। अहल्यापर बलात्कारके कारण गौतमके शापसे इन्द्रकी दाढ़ी मूंछ हरी हो गयी और विश्वामित्रके शापसे इन्हें अपना अण्डकोश खो देना पड़ा, जिससे भेड़ेके अण्डकोश जोड़े गये ( शान्ति० ३४२ । २३)। इन्हें दुहरी ब्रह्महत्या लगी (शान्ति. ३४२ । ४२ )। नारदजीसे अद्भुत घटनाके विषयमें इनका प्रश्न करना (शान्ति० ३५२ । ७-९)। एक तोतेके साथ संवाद ( अनु० ५। १३-२८)। राजर्षि भङ्गास्वनको स्त्री बना देना (अनु० १२ । ५-१०)। भङ्गाखनके दो सौ पुत्रों में फूट डालना ( अनु० १२ । २९-३१) ।भङ्गास्वनपर प्रसन्न होकर वर देना (अनु. १२ । ४२-४३)। मतङ्गको तपस्यासे विरत करनेके प्रसंगमें उसके साथ संवाद (अनु. २७ । २७ से २९ । १२ तक)। मतङ्गको वरदान देना (अनु० २९ । २४-२५) । शम्बरासुरसे व्यवहारके विषयमें प्रश्न ( अनु० ३६ । ३) । महर्षि देवशर्माकी पत्नी रुचिको प्रलोभन देना और विपुलद्वारा फटकार पाना (अनु० ४३ । ७-२६) । बृहस्पतिजीसे
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