________________
३६
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
३. जिनेश्वरसूरि का शास्त्रार्थ किसके साथ हुआ
१. कई खरतर कहते हैं कि शास्त्रार्थ सूराचार्य के साथ हुआ। २. कई कहते हैं कि शास्त्रार्थ कुर्चपुरागच्छवालों के साथ हुआ।२ ३. कई कहते हैं कि उपकेशगच्छ वालों के साथ शास्त्रार्थ हुआ।३ ४. कई कहते हैं कि शास्त्रार्थ चैत्यवासियों के साथ हुआ?
५. कई कहते हैं कि शास्त्रार्थ ८४ मठपतियों के साथ हुआ।५ ४. जिनेश्वरसूरि का शास्त्रार्थ किस विषय का था ?
१. कई खरतर कहते हैं कि शास्त्रार्थ कांसीपात्र का था।६ २. कई कहते हैं कि शास्त्रार्थ लिंग विषय का था।
१. तत्र च जिनगृह निवास लम्पटाः चैत्यवासी सूराचार्याः आसन्... सूराचार्यैः वसतिवास प्रतिषेधकं जिनगृहवाससमर्थकं स्वकपोलकल्पित शास्त्रप्रमाणं दर्शितम्।
"षट् स्थान प्रकरण प्रस्तावना, पृष्ठ १" जिनेश्वरसूरि के समय सूराचार्यों को सूरिपद तो क्या पर जन्म या दीक्षा भी शायद ही हुई हो, क्योंकि वि. सं. ११२० से ११२८ में अभयदेवसूरि ने सूराचार्य के गुरु
द्रोणाचार्य के पास अपनी टीकाओं का संशोधन कराया था। २. श्रीजिनेश्वरसूरि पाटणिराज श्रीदुर्लभनी सभाई कुर्चपुरा गच्छीय चैत्यवासी साथी कांस्य पात्रनी चर्चा की।
"सिद्धान्त मग., भाग २, वृ. ९४" ३. श्रीजिनेश्वरसूरि का अणहिल्लपुरपट्टण में चैत्यवासी शिथिलाचारी उपकेशगच्छियों के साथ राजा दुर्लभ (भीम) की राजसभा में शास्त्रार्थ हुआ इत्यादि ।
'महाजनवंश मुक्तावली, पृष्ठ १६८' नोट - उपकेशगच्छ आचार्यों के पास जिनेश्वरसूरि पढ़े थे तो क्या उन्होंने कृतघ्नी हो अपने ज्ञानगुरु से शास्त्रार्थ किया? यह कदापि संभव नहीं हो सकता है, यह केवल द्वेष के मारे कँवला और खरतर शब्द पर ही कल्पना की गई है।
'लेखक' ४. तथा चैत्यवासिनो हि पराजया... चैत्यवासिभिः सह विवादे ।
"ख. प., पृष्ठ २२" ५. संवत १०८० दुर्लभराजसभायां ८४ मट्ठपतेन जित्वा प्राप्त खरतरबिरुदः ।
'ख. प., पृष्ठ १०' ६. खरतर मुनि मग्नसागर अपने सिद्धान्त मग्नसागर पृष्ठ ९४ पर लिखते हैं कि जिनेश्वरसूरि
का शास्त्रार्थ कांसीपात्र का था। ७. दुर्लभ राजसभायां लिंगविवादे चैत्यवासिभिः सहविवादे श्रीजिनेश्वरसूरिणा जित्वा ।
'ख. प. प्र. प., पृष्ठ २७२'