Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ १३४ महापुरुषों का उपकार है उसको भूल जाना यह एक कृतघ्नीपना है और इसी वज्रपाप के कारण समाज का पतन हो रहा है। प्राचीन एवं अर्वाचीन साहित्य का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि कई कई गच्छवालों के आपस में खण्डन मण्डन हुआ करता था पर उपकेशगच्छवालों प्रति न तो किसी गच्छवालों ने हस्तक्षेप किया है और न उपकेशगच्छवालों ने भी किसी गच्छवालों प्रति गरम निगाह से देखा है अर्थात् उपकेशगच्छवाले सब गच्छवालों के साथ भ्रातृभाव से रहते थे। उपकेशगच्छ का अपरनाम कवलागच्छ भी है इसका मतलब भी यही है कि करड़ी एवं कठोर प्रकृतिवाले जिस प्रदेश में भ्रमण करते थे उसी प्रदेश में कोमल प्रकृति वाले भी विचरते थे, अतः जिन्हों की कोमल प्रकृति देख कर लोग उनको कवला कवला कहा करते थे अर्थात् उपकेशगच्छ के आचार्य अपनी कोमल प्रकृति से सब गच्छोवालों के साथ श्रेष्ठाचार रखते थे, यही कारण था कि सब गच्छवाले उनको पूज्य भाव से देखते एवम् मानते थे। जैन धर्म की दीक्षा उन महानुभावों के लिये है जो कि जातिवान हो, कुलवान हो, लज्जावान हो, वैराग्यवान हो । पर जब से शिष्य पीपासुओने अयोग्यों को दीक्षा देनी शुरु की तब से ही समाज रसातल में जाने लगी है, क्योंकि उन अयोग्यों में न तो धर्म का गौरव है न पूर्वाचार्यों के उपकार को ही जानते हैं, वे तो केवल पेट के पुजारी है और समाज में फूट कुसम्प डलवा कर आप अयोग्य होते हुए भी पुजवाने के प्रपंच करते हैं। खर-तर मत में कई अयोग्य जाटादि ने साधु वेष पहनकर पहले तो तपा खर-तरों को आपस में खूब लड़ाया, अब उनकी क्रूर दृष्टि उपकेशगच्छ की ओर पड़ी है। हाँ तपागच्छ में तो आज उनके मुंह तोड़ने वाले बहुत हैं पर उपकेशगच्छ में ऐसा कोई नहीं है कि उन क्लेश प्रिय अयोग्य व्यक्तियों के दांत खट्टे कर डाले। अतः खर-तरों का हौंसला बढ़ता ही जा रहा है, उन नीच प्रकृति वालों ने यहां तक लिखमारा है कि १. तुम्हारा रत्नप्रभसूरि किस गटर में छिप गया था? २. रत्नप्रभसूरि नाम के न तो कोई आचार्य हुए हैं और न ओसियां में रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल ही बनाये हैं। ओसियां में ओसवाल तो खर-तर आचार्यों ने ही बनाये हैं। इत्यादि "सिद्धान्तमग्नसागर पुस्तक में" ३. आगे चलकर और देखिये खर-तर लिखते हैं कि कुछ समय बाद

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256