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दे सकी? शायद जिनदत्तसूरिने उस बिजली (अग्नि) में किसी भूत प्रवेश कर के वचन ले लिया हो तो बात दूसरी है।
खरतर लोग जिनदत्तसूरि को युगप्रधान बतलाते हैं फिर जिनदत्तसूरि के इतना पक्षपात क्यों? जो बिजली के पास वचन केवल खरतरगच्छ के लिए ही लिया। क्या अखिल जैनों के लिए वचन लेना दादाजीने ठीक नहीं समझा था? पक्षपात का एक उदाहरण और भी मिलता है जो योगिनियों के पास सात वरदान लिये उसमें एक वह भी वरदान है कि खरतर श्रावक सिन्ध देश में जायेंगे तो ये निर्धन नहीं होंगे। क्या युगप्रधान का ये ही लक्षण हुआ करता हैं ? अपने गच्छ के अलावा दूसरे जैनों पर बिजली गिरे या वे निर्धन हो इसकी युगप्रधानों को परवाह ही नहीं। वास्तव में जैसे गायवाली घटना यतियोंने दादाजी की महिमा बढ़ाने को गढ़ ली है, वैसे ही बिजली की कल्पित कथा भी गढ डाली है। यदि ऐसा न होता तो कुछ वर्षों पूर्व जब खरतरगच्छीय कृपाचन्दजी मालवा में रतलाम के पास एक ग्राम् में प्रतिक्रमण कर रहे थे उस समय जोर से बिजली गिरी, जिससे २-३ श्रावकों को बड़ा भारी नुकशान हुआ, तो क्या कृपाचन्द्रजी खरतर गच्छ के नहीं थे? या बिजली अपना वचन भूल गई थी? खरतरों ! ऐसी झूठ मूठ बातों से तुम अपने आचार्यों की शोभा बढ़ानी चाहते हो, पर याद रक्खो तुम्हारी इस धांधली से उल्टी हंसी ही होती है। क्या दादाजी के किसी जीवन में ऐसी असत्य बातें लिखी हैं ? यदि हिम्मत हो तो भला एकाद पुष्ठ प्रमाण दे अपने कलंक का परिमार्जन करो। इत्यलम्।
दीवार नंबर ७ कइ खरतर लोग कहा करते है कि दादा जिनदत्तसूरिने ५२ वीर और ६४ योगिनीयों को वश में कर ली थी इत्यादि।
समीक्षा-इस कथन में क्या प्रमाण है? कुछ नहीं। भले जिनदत्तसूरिने ५२ वीर और ६४ योगिनियों को वश में कर शासन का क्या अर्थ करवाया? जिस समय मुसलमान लोग जैन मन्दिर-मूर्तियां तोड़ रहे थे उस समय वे ५२ वीर और ६४ योगिनिएं किस गुफा में गुप्त रहकर दादाजी की सेवा कर रहे थे?
शायद जिनदत्तसूरि और जिनशेखरसूरि इन दोनों गुरु भाइयों में जब आचार्य पदवी के लिए बड़ा भारी क्लेश चल रहा था तब जिनदत्तसूरि के पक्ष में ५२ वीर-लडाकु पुरुष और ६४ औरतें लड़ती होगी ! बाद में पीछे के लोगोंने उन ५२ लड़वैयों को वीर और ६४ औरतों को योगिनीएं लिख दी हों तो यह बात ठीक संभव हो सकती है। यदि ऐसा न हो तो खरतरों का कर्तव्य है कि वे जिनदत्तसूरि