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आर्यसुस्थीसूरिने चक्रवर्ती खारवेल को जैन बनाया।
सिद्धसेनदिवाकरसूरिने भूपति विक्रम को जैन बनाया। ६. आचार्य कालकसूरिने राजा धूवसेन को जैन बनाया।
आचार्य बप्पभट्टसूरिने ग्वालियर के राजा आम को जैन बनाया। आचार्य शीलगुणसूरिने वनराज चावड़ा गुर्जरनरेश को जैन बनाया। उपकेशगच्छीय जम्बुनाग गुरुने लोद्रवापट्टन में ब्राह्मणों को पराजित कर वहाँ के भूपति पर प्रचण्ड प्रभाव डाल जैनधर्म की उन्नति की और अनेक मंदिर
बनाये। १०. उपकेशगच्छीय शान्तिमुनिने त्रिभुवनगढ़ के भूपति को जैन बनाया, उनके
किल्ले में जैन मंदिर की प्रतिष्ठा की। उपकेशगच्छीय कृष्णर्षिने सपादलक्ष प्रान्त में अजैनों को जैन बना कर धर्म
का प्रचार बढ़ाया। १२. अंचलगच्छीय जयसिंहसूरिने भी कई जैनेतरों को जैन बनाये। १३. उदयप्रभसूरिने हजारों अजैनों को जैन बनाये। १४. तपागच्छीय सोमतिलकसूरि, धर्मघोषसूरि आदि महाप्रभाविक हुए और कइ
नये जैन बनाये। १५. संडारागच्छीय यशोभद्रसूरिने नारदपुरी के राव दूधा को जैन बनाया। १६. कलिकालसर्वज्ञ भगवान् हेमचन्द्राचार्यने राजा कुमारपाल को जैन बनाकर
१८ देशों में जैन धर्म का झण्डा फहराया और हजारों जैन मंदिरों की प्रतिष्ठा
करवाई। १७. आचार्य वादीदेवसूरिने ८४ वाद जीत कर जैन धर्म की पताका फहराई । १८. द्रोणाचार्य के पास अभयदेवसूरिने अपनी टीकाओं का संशोधन करवाया।
यदि इस भाँति क्रमशः लिखे जाय तो खरतरातिरिक्त गच्छाचार्यों के हजारों नंबर आ सकते हैं तो क्या किसी खरतरगच्छ के आचार्यने भी पूर्व कार्यों में से एक भी कार्य करके बतलाया है कि आप फूले ही नहीं समाते हो? आप नाराज न होना, हमारी राय में तो खरतराचार्योंने केवल उत्सूत्रप्ररुपणा करने के और जैन समाज में फूट कुसंप बढ़ाने के सिवाय और कोई भी काम नहीं किया और आज भी श्वेताम्बर समाज में जो कुसम्प है वह अधिकतर खरतरों के प्रताप से ही है। अन्यथा आप यह बतादें कि "जिस ग्राम से खरतरों का अस्तित्व होने पर भी उस ग्राम में फूट कुसम्प नहीं है, ऐसा कौन सा ग्राम है?" दूर क्यों जावें? आप खास कर नागौर का वर्तमान देखिये-श्रीमान् समदड़ियाजी के बनाये हुए स्टेशन