Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 245
________________ २४५ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww. की पन्द्रहवीं शताब्दी में अन्य प्रदेश से आकर भंवाल में वास किया, वहां से क्रमशः आज पर्यन्त की हिस्ट्री उन्हों के पास विद्यमान हैं, अतएव खरतरों का लिखना सरासर गप्प है। ७. बाठिया-वि. सं. ९१२ में आचार्य भावदेवसूरि ने आबू के पास प्रमा स्थान के राव माधुदेव को प्रतिबोध कर जैन बनाया। उन्होंने श्री सिद्धाचल का संघ निकाला। बांठ बांठ पर आदमी और उन सब को पैरामणि देने से बांठिया कहलाये। बाद वि. सं. १३४० रत्नाशाह से कवाड़, वि. सं. १६३१ हरखाजी से शाह हरखावत हुए इत्यादि इस जाति की उत्पत्ति एवं खुर्शीनाम शुरु से श्रीमान् धनरुपमलजी शाह अजमेर वालों के तथा कल्याणमलजी बांठिया नागौर वालों के पास मौजूद है। ___ "ख.-यति रामलालजी महा. मुक्ता. पृष्ठ २२ पर लिखते हैं कि वि. सं. ११६७ में जिनवल्लभसूरि ने रणथंभोर के पँवार राजा जालसिंह को उपदेश दे जैन बनाया, मूल गच्छ खरतर-विशेषता यह है कि बांठिया ब्रह्मेच शाह हरखावत वगैरह सब शाखाए लालसिंह के पुत्रों से ही निकली बतलाते हैं।" कसौटी-कहाँ तो वि. सं. ९१२ का समय और कहाँ ११६७ का समय । कवाड शाखा का समय १३४० का है तथा शाह हरखावत का समय वि. सं. १६३१ का है, जिसको खरतरों ने वि. सं. ११६७ का बतलाया हैं। इस जाति की उत्पत्ति के लिये तो खरतरों ने एक गप्पों का खजाना ही खोल दिया है पर क्या करें बिचारे ! यतियों की इस प्रकार गप्पों पर कोई भी बाठिया शाह हरखावत कवाड़ विश्वास ही नहीं करते हैं। ८. बोत्थरा-वि. सं. १०१३ में कोरंट गच्छाचार्य नन्नप्रभसूरि ने आबु के आस पास विहार कर बहुत से राजपूतों को प्रतिबोध कर जैन बनाये, जिसमें मुख्य पुरुष राव धांधल चौहान था। धांधल के पुत्र सुरजन-सुरजन के सांगण और सांगण के पुत्र राव बोहत्थ हुआ। बोहत्थ ने चन्द्रावती में एक जैन मंदिर बनाया और श्री शत्रुजय का विराट् संघ निकाल सर्व तीर्थों की यात्रा कर सोना की थाली और जनौउ की लेन दी, जिसमें सवा करोड़ द्रव्य खर्च हुआ। अतः बोहत्थ की सन्तान से बोत्थरा कहलाये। "खरतर. यति रामलालजी ने महा. मुक्ता. पृष्ठ ५१ पर लिखा है कि जालौर का राजा सावंतसिंह देवाड़ा की दो राणियां थी। एक का पुत्र सागर दूसरी का वीरमदेव, जालौर का राज रमदेव को मिला तब सागर अपनी माता को लेकर आब अपना नाना राजा भीम पवार के पास चला गया, राजा भीम ने आबु का राज सागर को दे दिया। उस समय चित्तौड़ का राणा रत्नसिंह पर मालवा का बादशाह फौज लेकर आया। राणा ने आबु से सागर को मदद के लिये

Loading...

Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256