Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 246
________________ २४६ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww बुलाया, सागर बादशाह को पराजय कर मालवा छीन लिया। बाद गुजरात के बादशाह ने आबु पर आक्रमण किया। सागर ने उसको हटा कर गुजरात भी छीन लिया। बाद दिल्ही का बादशाह गौरीशाह चित्तोड़ पर चढ़ आया। फिर चित्तौड़ वालों ने सागर को बुलाया, सागर ने वहाँ आकर आपस में समझौता करवा कर बादशाह से २२ लाख रुपये दंड के लेकर मालवा-गुजरात वापिस दे दिया। सागर के तीन पुत्र-१. बोहित्थ २. गंगादास ३. जयसिंह आबु का राज बोहित्थ को मिला वि. सं. ११९७ में जिनदत्तसूरि ने बोहित्थ को उपदेश दिया। बोहित्थ ने एक श्रीकर्ण नामक पुत्र को राज के लिये छोड़ दिया। शेष पुत्रों के साथ आप जैन बन गया, जिसका बोत्थरा गौत्र स्थापन किया। इतना ही क्यों पर जिनदत्तसूरि ने तो यहा तक कह दिया कि तुम खरतरों को मानोगे तब तक तुम्हारा उदय होगा इत्यादि। कसौटी-बोहित्थ का समय वि. सं. ११९७ का है। तब इसके पिता सागर का समय ११७० का होगा। चित्तौड का राणा रत्नसिंह सागर को अपनी मदद में बुलाता है, अब पहला तो चित्तौड़ के राणा रत्नसिंह का समय को देखना है कि वह सागर के समय चित्तौड़ पर राज करता था या किसी अन्य गति में था। चित्तौड़ राणाओ के इतिहास में रत्नसिंह नाम के दो राजा हुए (१) वि. सं. १३५९ (दरीबे का शिलालेख) दूसरा वि. सं. १५८४ में तख्त निशीन हुआ, जब सागर का समय वि. सं. ११७० का कहा जाता है समझ में नहीं आता है कि ११७० में राणा सागर हुआ और १३५९ में रत्नसिंह हुआ तो रत्नसिंह सागर की मदद के लिये किस भव में बुलाया होगा? अब वि. सं. ११७० के आसपास चित्तौड़ के राणों की वंशावली भी देख लीजिये। चित्तोड़ के राणा __ आबु का सागर के समय चित्तौड़ बैरिसिंह वि. सं. ११४३ । पर कोई रत्नसिंह नाम का राणा हुआ ही विजयसिंह वि. सं. ११६४ नहीं है, यतिजी ने यह एक बिना शिर पैर अरिसिंह वि. सं. ११८४ की गप्प ही मारी है। चौड़सिंह वि. सं. ११९५ आगे चल कर सागर का पिता सावंतसिंह देवड़ा का जालौर पर राज होना यतिजी ने लिखा है इसमें सत्यता कितनी है? सावंतसिंह सागर का पिता होने से उसका समय वि. सं. ११५० के आसपास का होना चाहिये क्योंकि सागर का समय वि. सं. ११७० का है। यतिजी का लिखा हुआ वि. सं. ११५० में सावंतसिंह देवड़ा तो क्या पर देवडा शाखा प्रार्दुभाव तक भी नहीं हुआ था, वास्तव में देवडा शाखा विक्रम की तेरहवीं शताब्दी

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