Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 251
________________ २५१ अखेराज I अपने भक्त समझा हैं वैसे ही मेडता के चोपड़ों को " उपसग्गहरं पास" नामक स्तोत्र देकर अपने पक्ष में बना लिया हों इस बात का उल्लेख खरतर. क्षमाकल्याणजी ने अपनी पट्टावलियों में नाहड़राव (वि. सं. १२१२) भी किया हैं। बस ! खरतरों ने इस प्रकार यंत्र - स्तोत्र देकर भद्रिक लोगों को कृतघ्नी बनाये हैं, वास्तव में चोपड़ा उपकेशगच्छीय श्रावक हैं। १०. छाजेड़ - वि. सं. ९४२ में आचार्य सिद्धसूरि ने शिवगढ़ के राठोड़राव कजल को उपदेश देकर जैन बनाये, कजल के पुत्र धवल और धवल के पुत्र छ हुआ, छजूने शिवगढ़ में भगवान् पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर बनाया। बाद शत्रुंजयादि तीर्थों का संघ निकाला, जिसमें सोना की कटोरियों में एक एक मोहर रख लेण दी इत्यादि शुभ क्षेत्र में करोड़ों रुपये खर्च किये, उस छजू की सन्तान छाजेड़ कहलाई । ‘“खरतर यति रामलालजी महा. मुक्ता. पृ. ६८ पर लिखते हैं कि वि. सं. १२१५ में जिनचन्द्रसूरि ने धांधल शाखा के राठोड रामदेव के पुत्र काजल को ऐसा वास चूर्ण दिया कि उसने अपने मकान के देवी मन्दिर के तथा जिनमन्दिर के छाजों पर वह वासचूर्ण डालते ही सब छाजे सोने के हो गये इस लिये वे छाजेड़ कहलाये इत्यादि ।" कसौटी-वासचूर्ण देने वालों में इतनी उदारता न होगी या काजल का हृदय संकीर्ण होगा? यदि वह वासचूर्ण सब मन्दिर पर डाल देता तो कलिकाल का भरतेश्वर ही बन जाता !! ऐसा चमत्कारी चूर्ण देने वालों की मौजूदगी में मुसलमानों ने सैकड़ों मन्दिर एवं हजारों मूर्तियों को तोड़ डाले, यह एक आश्चर्य की बात है, खैर आगे चल कर राठोड़ों में धांधल शाखा को देखिये जिनचन्द्रसूरि के समय (वि. सं. १२१५) में विद्यमान थी या खरतरों ने गप्प ही मारी है ? राठोड़ों का इतिहास डंका की चोट कहता है कि विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में राठोड़ राव आसस्थानजी के पुत्र धांधल से राठोड़ों में धांधल शाखा का जन्म हुआ तब वि. सं. १२१५ में जिनचन्द्रसूरि ने किसको उपदेश दिया यह गप्प नहीं तो क्या गप्प के बच्चे हैं ? ११. बाफना - इनका मूल गौत्र बाप्पनाग है और इसके प्रतिबोधक वीरात ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि हैं । नाहाट जांघड़ा वेताला दफ्तरी बालिया पटवा वगैरह बप्पनाग गौत्र की शाखाए हैं। 44 'खरतर. यति रामलालजी मा. मु. पृ. ३४ पर लिखते है कि धारानगरी के राजा पृथ्वीधर पँवार की सोलहवीं पीढ़ि पर जवन और सच्चू नाम के दो नर हुए, वे धारा से निकल

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