Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 249
________________ २४९ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww १३५६ तक मालवा में पवार राजा जयसिंह का राज था (देखो भारत का प्राचीन राजवंश) इसी प्रकार सागर देवड़ा के साथ गुजरात के बादशाह की कथा घड़ निकाली है। गुजरात में वि. सं. १३५८ तक बाघला वंश के राजा करण का राज था। बाद में बादशाह के अधिकार में गुजरात चलाया गया। (देखो पाटण का इतिहास) इसी भांति सागर देवड़ा के साथ दिल्ही बादशाह का अघटित सम्बन्ध जोड़ दिया है। सागर का समय वि. सं. ११७० के आसपास का है। तब दिल्ही पर वि. सं. १२४९ तक हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का राज था। फिर समझ में नहीं आता है कि यतिजी ऐसी असम्बन्धिक बातें लिख सभ्य समाज में हाँसी के पात्र क्यों बनते हैं? क्या इस बीसवीं शताब्दी के बोत्थरा बच्छावत इतने अज्ञात हैं कि यतिजी के इस प्रकार की गप्पों पर विश्वास कर अपने प्रतिबोधक कोरंटगच्छाचार्यों को भूल कर कृतघ्नी बन जाय ? "खरतर लोग कहा करते हैं कि हमारी वंशावलियों की बहियों बीकानेर में कर्मचन्द वच्छावत ने कुँवा में डाल कर नष्ट कर डाली इत्यादि।" शायद इसका कारण यह ही तो न होगा कि उपरोक्त खरतरों की लिखी हुई बोथरों की उत्पत्ति कर्मचन्द ने पढ़ी हो और उनको वे कल्पित गप्पें मालुम हुई हो तथा वह समझ गया हो कि हमारे प्रतिबोधक आचार्य कोरंटगच्छ के हैं, केवल अधिक परिचय के कारण हम खरतर गच्छ की क्रिया करने के लिये ही खरतरों ने हम लोगों की झूठ मूट ही खरतर बनाने को मिथ्या कल्पना कर डाली हैं, अतएव खरतरों की सब की वंशावलियों कवा में डाल कर अपनी संतान को सदा के लिये सुखी बनाइ हो ! खैर कुछ भी हो पर खरतरों की उपरोक्त लिखी हुई बोत्थरों की उत्पत्ति तो बिलकुल कल्पित है, इस विषय में "जैन जाति निर्णय" नामक किताब को देखनी चाहिये कि जिस विस्तार से समालोचना की गई है। __वास्तव में राणो सागर महाराणा प्रताप का लघुभाई था और इसका समय विक्रम की सतरहवीं शताब्दी का है और सावंतसिंह देवड़ा विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में हुआ है। खरतरों ने शिशोदा और देवड़ा को बाप बेटा बना कर यह ढांचा खडा किया है और यह कल्पित ढांचा खड़ा करते समय यतियों को यह भान नहीं था कि इसकी समालोचना करने वाला भी कोई मिलेगा। खैर ! इस समय खरतरगच्छ की सात पट्टावलियां मेरे पास मौजूद हैं। जिसमें किसी भी पट्टावलि में यह नहीं लिखा है कि जिनदत्तसूरि ने बोत्थरा जाति बनाई थी। पर उन पट्टावलियों से तो उलटा यही सिद्ध होता है कि दादाजी के

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256