Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 247
________________ में चौहान देवराज से निकली है जब यतिजी वि. सं. ११५० के आस पास जालौर पर सावंतसिंह देवडा का राज बतलाते हैं यह भी एक सफेद गप्प ही है । अब वि. सं. ११५० के आस पास जालौर पर किसका राज था इसका निर्णय के लिये जालौर का किल्ला में तोपखाना के पास भीत में एक शिलालेख लगा हुआ है, उसमें जालौर के राजाओं की नामावली इस प्रकार दी है। जालौर के पँवार राजा विशलदेव का उत्तराधिकारी पँवार कुन्तपाल वि. सं. १२३६ तक जालौर पर राज किया बाद नाडोल का चौहान कीर्तिपाल ने पँवारों से जालौर का राज छीन कर अपना अधिकार जमा लिया । सभ्य समाज समझ सकते हैं कि विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में तेरहवीं शताब्दी तक जालौर पर पँवारों का राज रहा था जिसका प्रमाण वहाँ का शिलालेख दे रहा है फिर यतिजी ने यह अनर्गल गप्प क्यों मारी है ? अब आगे चल कर आबु की यात्रा कीजिये कि आबु पर चौहानों का राज किस समय से हुआ ? जो यतिजी ने वि. सं. ११७० के आसपास राजा सागर देवड़ा का राज होना लिखा है । हम यहां पहला तो आबु के पँवार राजाओं की वंशावली जो शिलालेखों के आधार पर स्थिर हुई और पं. गौरीशंकरजी ओझा ने सिरोही राज का इतिहास में लिखी है बतला देते हैं। चन्दन देवराज अप्राजित विजय धारा वर्ष विशल देव (११७४) आबु के पँवार राजा धुधक वि. सं. १०७८ I पूर्णपाल वि. सं. ११०२ २४७ 1 कान्हादेव वि. सं. ११२३ I ध्रुव भट I रामदेव I इस आबु नरेशों में किसी स्थान पर देवड़ा सागर की गन्ध तक भी नहीं मिलती है, अतएव यतिजी का लिखना एक उड़ती गप्प है कि "वि. सं. ११७० के आसपास आबु पर पँवार भीम का राज था और उसके पुत्र न होने से अपनी पुत्री का पुत्र सागर देवड़ा को आबु का राज दे दिया था । " अब आबु पर चौहानों का राज कब से हुआ ? पं. गौरीशंकरजी ओझा सिरोही राज के इतिहास में लिखते हैं कि नाडोल का

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