Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 255
________________ २५५ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ जैसे चोरड़ियों को अजैनों से जैन बनते ही चोरडिया जाति का रुप दिया है वैसे गुलेच्छा पारख वगैरह को भी दे दिया है परन्तु इन जातियों के नाम संस्करण एक समय में नहीं किन्तु पृथक् पृथक् समय में हुए हैं, इन सबका मूल गौत्र आदित्यनाग है, अतएव खरतरों की गप्पों पर कई भी विश्वास न करें । १६. संचेती-यह सुंचिंति गौत्र की शाखा है। इनके प्रतिबोधक वीरात् ७० वर्ष आचार्य रत्नप्रभसूरि हुए हैं। ख. य. रा. म. मु. पृ. १४ पर लिखते हैं कि वि. सं. १०२६ में वर्धमानसूरि ने दिल्ही के सोनीगरा चौहान राजा के पुत्र वोहिथ के सांप का विष उतार जैन बनाया संचेती गौत्र स्थापित किया। कसौटी-अव्वल तो दिल्ही पर उस समय चौहानों का राज ही नहीं था, दूसरा चौहानों में उस समय सोनीगरा शाखा भी नहीं थी। इतिहास कहता है कि नाडोल का राव कीर्तिपाल वि. सं. १२३६ में जालौर का राज अपने अधिकार में कर वहाँ की सोनीगरी पहाड़ी पर किल्ला बनाना आरम्भ किया, उसके बाद आपके उत्तराधिकारी संग्रामसिंह ने उस किल्ला को पूरा करवाया, जब से जालौर के चौहान सौनीगरा कहलाया। जब चौहानों में सोनीगरा शाखा ही १२३६ के बाद में पैदा हुई तो १०२६ में दिल्ही पर सोनीगरों का राज लिख मारना यह बिलकुल मिथ्या गप्प नहीं तो और क्या है। इनके अलावा भी खरतरों ने जितनी जातियों को खरतर होना लिखा है वह सब के सब कल्पित गप्पें लिख कर बिचारे भद्रिक लोगों को बड़ा भारी धोखा दिया है। इसके लिये 'जैन जाति निर्णय' देखना चाहिये। प्यारे खरतरों ! न तो पूर्वोक्त जातियों एवं ओसवालों के लाटाओं के गाढ़े तुम्हारे वहाँ उतरेगा और न किसी दूसरों के वहाँ । जिस जिस जातियों के जैसेजैसे संस्कार जम गये हैं वह उसी प्रकार बरत रही हैं। कई लिखे पढ़े लोग निर्णय कर असत्य का त्याग कर सत्य स्वीकार कर रहे हैं। इस हालत में इस प्रकार गप्पें लिखकर प्राचीन इतिहास का खून करने में तुमको क्या लाभ है? स्मरण में रहे अब अन्ध विश्वास का जमाना नहीं रहा है। यदि तुम्हारे अन्दर थोड़ा भी सत्यता का अंश हो तो मैंने जो नमूना के तौर पर कतिपय जातियों का बयान ऊपर लिखा है उसमें से एक भी जाति की अपने लिखी उत्पत्ति को प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा सत्य कर बतलावे वरना अपनी भूल को सुधार लें। अन्त में मैं इतना ही कह कर मेरे लेख को समाप्त कर देना चाहता हूँ कि मैंने यह लेख खण्डन मण्डन की नीति से नहीं लिखा पर इतिहास को सुरक्षित

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