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जालौर फतेह कर वहाँ राज करने लगे। जिनवल्लभसूरि ने इनको विजययंत्र दिया था। जिनदत्तसूरिने इनको उपदेश देकर जैन बनाये। बाफना गोत्र स्थापन किया तथा पूर्व रत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित बाफना गौत्र भी इनमें मिल गया इत्यादि।" ।
कसौटी-इस घटना का समय जिनवल्लभसूरि और जिनदत्तसूरि से संबन्ध रखता हैं। अतएव वि. सं. ११७० के आसपास का समझा जा सकता है। उस समय धारा या जालौर पर कोई जवन सच्चू नामक व्यक्ति का अस्तित्व था या नहीं इस के लिये हम यहाँ दोनों स्थानों की वंशावलियों का उल्लेख कर देते हैं। जालौर के पवार राजा
धारा के पवार राजा चन्दन राजा
नर वर्मा (वि. सं. ११६४)
देवराज
यशोवर्मा (वि. सं. ११९२)
अप्राजित
जयवर्मा
विजल
लक्षणवर्मा (वि. सं. ६२००)
धारावर्ष
हरिचन्द्र (वि. सं. १२३६) विशालदेव (वि. सं. ११७४) (जालोर तोपखाना का शिलालेख) ('पँवारों का इतिहास' से) कुंतपाल (वि. सं. १२३६)
जालौर और धारा के राजाओं में जवन सच्चू की गन्ध तक भी नहीं मिलती है फिर समझ में नहीं आता है कि यतिजी ने यह गप्प क्यों हांक दी होगी?
आचार्य रत्नप्रभसूरि ने बाफना पहला बनाया था तो यतिजी लिखते ही हैं, फिर दादाजी ने बाफना गौत्र क्यों स्थापित किया और जवन सच्चू के साथ बाफनों का कोई खास तौर पर सम्बन्ध भी नहीं पाया जाता है।
वि. सं. १८९१ में जैसलमेर के पटवों (बाफनों) ने श@जय का संघ निकाला, उस समय वासक्षेप देने का खरतरों ने व्यर्थ ही झगड़ा खड़ा किया, जिसका इन्साफ वहा के रावल राजा गजसिंह ने दिया कि बाफना उपकेशगच्छ के ही श्रावक हैं। वासक्षेप देने का अधिकार उपकेशगच्छ वालों का ही है, विस्तार से देखो जैन जाति निर्णय नामक किताब ।
१२.राखेचा-वि. सं. ८७८ में आचार्य देवगुप्तसूरि ने कालेरा का भाटीराव