Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 239
________________ २३९ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww के मन्दिर की प्रतिष्ठा के समय क्या श्वेताम्बर, क्या दिगम्बर और क्या स्थानकवासी सभीने अभेदभाव से एकत्रित होकर जैन धर्म की प्रभावना की थी और इसके लिये जैनेतर जनता जैन धर्म की मुक्त कण्ठ से भूरि भूरि प्रशंसा कर रही थी, किन्तु जब खरतरों का आगमन होने का था तब खरतरगच्छीय अज्ञ लोगोंने अपने आचार्यों की अगवानी के निमित्त ही मानों जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज के बंधे हुए प्रेम के टुकडे टुकड़े कर दो पार्टिये बना डाली। यही कारण है कि अब तपागच्छ के बृहद् समुदाय को भी खरतर साधुओं की क्लेशमय प्रवृत्ति के कारण उनका बॉयकाट करना पड़ा है। समझ में नहीं आता है कि खरतरलोग ऐसी दशा में बिना शिर पैर की गप्पे हांक अपने आचार्यों का कहाँ तक प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं ? खरतरों को यह सोच लेना चाहिये कि अब केवल हवाई किल्लों से मानी हुई इज्जत का भी रक्षण न होगा, क्योंकि वर्तमान में तो जनता जरा सी बात के लिए भी प्रामाणिक प्रमाण पूछती है और उसीको ही मान देती है। इसके अलावा खरतरगच्छीय यतियों ने अपनी किताबों में अपने खरतरगच्छाचार्यों को ऐसे रुप में चित्र दिये है कि वे वर्तमान यतियों से अधिक योग्यतावाले सिद्ध नहीं होते हैं, क्योंकि उन्होंने किसी को यंत्र मंत्र करनेवाला, किसी को दवाई करनेवाला, किसी को कौतूहल (तमाशा) करनेवाला, किसी को गृहस्थियों की हुण्डी स्वीकारनेवाला तो किसी को जहाज तरानेवाला, किसी को धन, पुत्र देनेवाला आदि आदि लिख कर उनको चमत्कारी सिद्ध करने की कोशिश की है। पर जब थली के लोग बिल्कुल ज्ञानशून्य थे तब वे इन चमत्कारों पर मुग्ध हो जाते थे। पर अब तो लोग लिख पढ़ कर कुछ सोचने समझनेवाले हुए हैं। अब वे ऐसी कल्पित घटनाओं से उल्टा नफरत करने लग गए हैं। इस विषय में विशेष खुलासा देखो "जैन जाति निर्णय" नामक पुस्तक। खरतरगच्छीय कितनेक क्लेशप्रिय साधु जिनमें कि किसी के प्रश्न का उत्तर देने की योग्यता तो है नहीं, वे अपने अज्ञ भक्तों को यों ही बहका देते हैं कि देखो इस किताब में अमुक व्यक्तिने अपने दादाजी की निंदा की है। जैसे कि आज से १२ साल पहले "जैन जाति निर्णय" नामक पुस्तक प्रकाशित हुई थी, जिसके विषय में उसका कुछ भी उत्तर न लिख पक्षपाती लोगों में यह गलतफहमी फैला दी कि इस में तुम्हारी निन्दा है, परन्तु जब लोगोंने प्रस्तुत पुस्तक पढ़ी तो मालूम हुआ कि इसमें खरतरगच्छीय आचार्यों की कोई निंदा नहीं, पर आधुनिक लोगोंने खरतरगच्छीय आचार्यों के विषय में कितनीक अयोग्य घटनाएं घड़ डाली हैं उन्हीं का प्रतिकार है। और वह भी ठीक ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा किया गया है।

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